महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 1-21

त्रिनवतितम (93) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन द्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु, म्‍लेच्‍छ सैनिक और अम्‍बष्‍ठ आदि का वध

संजय कहते हैं-राजन! काम्‍बोजराज सुदक्षिण और वीर श्रुतायुध के मारे जाने पर आपके सारे सैनिक कुपित हो बड़े वेग से अर्जुन पर टूट पड़े। महाराज! वहाँ अभीषाह, शूरसेन, शिबि और वसाति देशीय सैनिकगण अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय पाण्‍डुकुमार अर्जुन ने उपर्युक्त सेनाओं के छ: हजार सैनिकों तथा अन्‍य योद्धाओं को भी अपने बाणों द्वारा मथ डाला। जैसे छोटे-छोटे मृग बाघ से डरकर भागते है, उसी प्रकार वे अर्जुन से भयभीत हो वहाँ से पलायन करने लगे। उस समय अर्जुन रणक्षेत्र में शत्रुओं पर विजय पाने की इच्‍छा से उनका संहार कर रहे थे। यह देख उन भागे हुए सैनिकों ने पुन: लौटकर पार्थ को चारों ओर से घेर लिया। उन आक्रमण करने वाले योद्धाओं के मस्‍तकों और भुजाओं को अर्जुन ने गाण्‍डीव धनुष द्वारा छोड़े हुए बाणों से तुरंत ही काट गिराया। वहाँ गिराये हुए मस्‍तकों से वह रणभूमि ठसाठस भर गयी थी और उस युद्धस्‍थल में कौओं तथा गीधों की सेना के आ जाने से वहाँ मेघ की छाया-सी प्रतीत होती थी।

इस प्रकार जब उन समस्‍त सैनिकों का संहार होने लगा, तब श्रुतायु तथा अच्युतायु–ये दो वीर क्रोध और अमर्ष में भरकर अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे। वे दोनों बलवान, अर्जुन से स्‍पर्धा रखने वाले, वीर, उत्‍तम कुल में उत्‍पन्‍न और अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले थे। उन दोनों ने अर्जुन पर दायें-बायें से बाण बरसाना आरम्‍भ किया। महाराज! वे दोनों वीर महान यश की अभिलाषा रखते हुए आपके पुत्र के लिये अर्जुन के वध की इच्‍छा रखकर हाथ में धनुष ले बड़ी उतावली के साथ बाण चला रहे थे। जैसे दो मेघ किसी तालाब को भरते हों, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए उन दोनों वीरों ने झुकी हुई गांठ वाले सहस्‍त्रों बाणों द्वारा अर्जुन को आच्‍छादित कर दिया। फिर रथियों में श्रेष्‍ठ श्रुतायु ने कुपित होकर पानीदार तीखी धारवाले तोमर से अर्जुन पर आघात किया। उस बलवान शत्रु के द्वारा अत्‍यन्‍त घायल किये हुए शत्रुसूदन अर्जुन उस रणक्षेत्र में श्री कृष्‍ण को मोहित करते हुए स्‍वयं भी अत्‍यन्‍त मूर्च्छित हो गये। इसी समय महारथी अच्युतायु ने अत्‍यन्‍त तीखे शूल के द्वारा पाण्‍डुकुमार अर्जुन पर प्रहार किया।

उसने इस प्रहार द्वारा महामना पाण्‍डुपुत्र अर्जुन के घाव पर नमक छिड़क दिया। अर्जुन भी अत्‍यन्‍त घायल होकर ध्‍वज- दण्‍ड के सहारे टिक गये। प्रजानाथ! उस समय अर्जुन को मरा हुआ मानकर आपके सारे सैनिक जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। अर्जुन को अचेत हुआ देख भगवान श्रीकृष्‍ण अत्‍यन्‍त संतप्‍त हो उठे और मन को प्रिय लगने वाले वचनों द्वारा वहाँ उन्‍हें आश्रवासन देने लगे। तदनन्‍तर रथियों में श्रेष्‍ठ श्रुतायु और अच्युतायु ने अपना लक्ष्‍य सामने पाकर अर्जुन तथा वृष्णिवंशी श्रीकृष्‍ण पर चारों ओर से बाण वर्षा करके चक्र, कूबर, रथ, अश्र्व, ध्‍वज और पताका सहित उन्‍हें उस रणक्षेत्र में अदृश्‍य कर दिया। वह अद्भुत–सी बात हो गयी। भारत! फिर अर्जुन धीर-धीरे सचेत हुए, मानो यमराज के नगर में पहुंचकर पुन: वहाँ से लौटे हों। उस समय भगवान श्रीकृष्‍ण सहित अपने रथ को बाण समूह से आच्‍छादित और सामने खड़े हुए दोनों शत्रुओं को अग्‍नि के समान देदीप्‍यमान देखकर महारथी अर्जुन ने ऐन्‍द्रास्‍त्र प्रकट किया। उससे झुकी हुई गांठवाले सहस्‍त्रों बाण प्रकट होन लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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