दिनेश चन्द (वार्ता | योगदान) |
छो (Text replacement - "उन्ही " to "उन्हीं ") |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
[[गान्धारी]] बोलीं- [[भीमसेन]] ने जिसे मार गिराया था, वह शूरवीर [[अवन्ती]] नरेष बहुतेरे बन्धु-बान्धव से सम्पन्न था; परन्तु आज उसे बन्धुहीन की भाँति गीध और गीदड़ नोच-नोच कर खा रहे हैं। मधुसूद! देखो, अनेकों शूरवीरों का संहार करके वह खून से लथपथ हो वीरशैया पर सो रहा है। उसे सियार, कंक और नाना प्रकार के मांसभक्षी जीव जन्तु इधर-उधर खींच रहे हैं। यह समय का उलट-फेर तो देखो। भयानक मारकाट मचाने वाले इस शूरवीर अवन्ति नरेष को वीरषैया पर सोया देख उसकी स्त्रियाँ रोती हुई उसे सब ओर से घेर कर बैठी हैं। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]! देखो, महाधनुर्धर प्रतीप नन्दन मनस्वी [[बाह्लिक]] [[भल्ल]] से मारे जाकर सोये हुए सिंह के समान पड़े हैं। रणभूमि में मारे जाने पर भी पूर्णमासी को उगते हुए पूर्ण [[चन्द्रमा]] की भाँति इनके मुख की कांति अत्यन्त प्रकाशित हो रही है। श्रीकृष्ण! पुत्र शोक से संतप्त हो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इन्द्रकुमार [[अर्जुन]] ने युद्धस्थल में [[वृद्धक्षत्र (जयद्रथ पिता)|वृद्धक्षत्र]] के पुत्र [[जयद्रथ]] को मार गिराया है। यद्यपि उसकी रक्षा की पूरी व्यवस्था की गयी थी, तब भी अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाने की इच्छा वाले महात्मा अर्जुन ने ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं का भेदन करके जिसे मार डाला था, वही यह जयद्रथ यहाँ पड़ा है। इसे देखो। जनार्दन! सिन्धु और [[सौवीर|सौवीर देश]] के स्वामी अभिमानी और मनस्वी जयद्रथ को गीध और सियार नोच-नोच कर खा रहे हैं। | [[गान्धारी]] बोलीं- [[भीमसेन]] ने जिसे मार गिराया था, वह शूरवीर [[अवन्ती]] नरेष बहुतेरे बन्धु-बान्धव से सम्पन्न था; परन्तु आज उसे बन्धुहीन की भाँति गीध और गीदड़ नोच-नोच कर खा रहे हैं। मधुसूद! देखो, अनेकों शूरवीरों का संहार करके वह खून से लथपथ हो वीरशैया पर सो रहा है। उसे सियार, कंक और नाना प्रकार के मांसभक्षी जीव जन्तु इधर-उधर खींच रहे हैं। यह समय का उलट-फेर तो देखो। भयानक मारकाट मचाने वाले इस शूरवीर अवन्ति नरेष को वीरषैया पर सोया देख उसकी स्त्रियाँ रोती हुई उसे सब ओर से घेर कर बैठी हैं। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]]! देखो, महाधनुर्धर प्रतीप नन्दन मनस्वी [[बाह्लिक]] [[भल्ल]] से मारे जाकर सोये हुए सिंह के समान पड़े हैं। रणभूमि में मारे जाने पर भी पूर्णमासी को उगते हुए पूर्ण [[चन्द्रमा]] की भाँति इनके मुख की कांति अत्यन्त प्रकाशित हो रही है। श्रीकृष्ण! पुत्र शोक से संतप्त हो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इन्द्रकुमार [[अर्जुन]] ने युद्धस्थल में [[वृद्धक्षत्र (जयद्रथ पिता)|वृद्धक्षत्र]] के पुत्र [[जयद्रथ]] को मार गिराया है। यद्यपि उसकी रक्षा की पूरी व्यवस्था की गयी थी, तब भी अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाने की इच्छा वाले महात्मा अर्जुन ने ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं का भेदन करके जिसे मार डाला था, वही यह जयद्रथ यहाँ पड़ा है। इसे देखो। जनार्दन! सिन्धु और [[सौवीर|सौवीर देश]] के स्वामी अभिमानी और मनस्वी जयद्रथ को गीध और सियार नोच-नोच कर खा रहे हैं। | ||
− | अच्युत! इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियाँ यद्यपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़याँ उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाश को उनके निकट से गहरे गड्ढे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देश की स्त्रियाँ सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। जनार्दन! जिस दिन जयद्रथ [[द्रौपदी]] को हरकर [[केकय|केकयों]] के साथ भागा था, उसी दिन यह [[पाण्डव|पाण्डवों]] के द्वारा वन्य हो गया था परन्तु उस समय [[दु:शला]] का सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण! | + | अच्युत! इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियाँ यद्यपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़याँ उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाश को उनके निकट से गहरे गड्ढे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देश की स्त्रियाँ सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। जनार्दन! जिस दिन जयद्रथ [[द्रौपदी]] को हरकर [[केकय|केकयों]] के साथ भागा था, उसी दिन यह [[पाण्डव|पाण्डवों]] के द्वारा वन्य हो गया था परन्तु उस समय [[दु:शला]] का सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण! उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं उसका सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी [[दु:शला]] जो अभी बालिका है, किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुएँ भी अनाथा हो गयीं। हाय! हाय, धिक्कार है। देखो, देखो दु:शला शोक और भय से रहित-सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीर ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, वही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय [[मृत्यु]] के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियाँ रो रही हैं। |
| style="vertical-align:bottom;"| | | style="vertical-align:bottom;"| |
01:02, 28 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
द्वाविंश (22) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
अच्युत! इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियाँ यद्यपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़याँ उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाश को उनके निकट से गहरे गड्ढे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देश की स्त्रियाँ सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। जनार्दन! जिस दिन जयद्रथ द्रौपदी को हरकर केकयों के साथ भागा था, उसी दिन यह पाण्डवों के द्वारा वन्य हो गया था परन्तु उस समय दु:शला का सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण! उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं उसका सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी दु:शला जो अभी बालिका है, किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुएँ भी अनाथा हो गयीं। हाय! हाय, धिक्कार है। देखो, देखो दु:शला शोक और भय से रहित-सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीर ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, वही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय मृत्यु के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियाँ रो रही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज