द्वादश (12) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 24-30 का हिन्दी अनुवाद
‘भरतश्रेष्ठ! आपको क्रोध के वशीभूत हुआ जान मैंने मृत्य की दाढों में फँसे हुए कुन्तीकुमार भीमसेन को पीछे खींच लिया था। राजसिंह! बल में आपकी समानता करने वाला कोई नहीं है। महाबाहो! आपकी दोनों भुजाओं की पकड़ कौन मनुष्य सह सकता है? जैसे यमराज के पास पहुँचकर कोई भी जीवित नहीं छूट सकता, उसी प्रकार आपकी भुजाओं के बीच में पड़ जाने पर किसी के प्राण नहीं बच सकते। कुरुनन्दन! इसलिए आपके पुत्र ने जो भीमसेन की लोहमयी प्रतिमा बनवा रखी थी, वही मैंने आपको भेंट कर दी। राजेन्द्र! आपका मन पुत्र शोक से संतप्त हो धर्म से विचलित हो गया है; इसीलिये आप भीमसेन को मार डालना चाहते हैं। राजन! आपके लिय यह कदापि उचित न होगा कि आप भीम का वध करें। महाराज! (भीमसेन न मारते तो भी) आपके पुत्र किसी तरह जीवित नहीं रह सकते थे (क्योंकि उनकी आयु पूरी हो चुकी थी)। अत: हम लोगों ने सर्वत्र शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से जो कुछ किया है, उन सब बातों का आप भी अनुमोदन करें। मन को व्यर्थ शोक में न डालें'। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जलप्रदानिक पर्व में भीमसेन की लोहमयी प्रतिमा का भंग होना विषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|