अशीतितम (80) अध्याय: सभा पर्व (अनुद्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद
भारत! धीरस्वभाव वाले पुरोहित धौम्य जी कुशों का अग्र-भाग नैर्ऋत्य कोण की ओर करके यम देवता सम्बन्धी साममन्त्रों का गान करते हुए पाण्डवों के आगे-आगे जा रहे हैं। धौम्य जी यह कहकर गये थे कि युद्ध में कौरवों के मारे जाने पर उनके गुरु भी इसी प्रकार कभी साम-गान करेंगे। महाराज! उस समय नगर के लोग अत्यन्त दु:ख से आतुर हो बार-बार चिल्लाकर कह रहे थे कि ‘हाय-हाय! हमारे स्वामी पाण्डव चले जा रहे हैं। अहो! कौरवों जो बडे़-बढे़ लोग हैं, उनकी यह बालकों की-सी चेष्टा तो देखो। धिक्कार है उनके इस बर्ताव को! ये कौरव लोभवश महाराज पाण्डु के पुत्रों को राज्य से निकाल रहे हैं। इन पाण्डुपुत्रों से वियुक्त होकर हम सब लोग आज अनाथ हो गये। इन लोभी और उदण्ड कौरवों के प्रति हमारा प्रेम कैसे हो सकता है?' महाराज! इस प्रकार मनस्वी कुन्तीपुत्र अपनी आकृति एवं चिह्नों के द्वारा अपने आन्तरिक निश्चय को प्रकट करते हुए वन को गये हैं। हस्तिनापुर उन नरश्रेष्ठ पाण्डवों के निकलते ही बिना बादल के बिजली गिरने लगी, पृथ्वी काँप उठी। राजन् बिना पर्व (अमावस्या) के ही राहु ने सूर्य को ग्रस लिया था और नगर को दायें रखकर उल्का गिरी थी। गीध, गीदड़, और कौवे आदि मांसाहारी जन्तु नगर के मन्दिरों, देववृक्षों, चहार दीवारी तथा अट्टालिकाओं पर मांस और हड्डी आदि लाकर गिराने लगे थे। राजन्! इस प्रकार आपकी दुर्मन्त्रणा के कारण ऐसे-ऐसे अपशकुन रूप दुर्दम्य एवं महान् उत्पात प्रकट हुए हैं, जो भरतवंशियों के विनाश की सूचना दे रहे हैं। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार राजा धृतराष्ट्र और बुद्धिमान विदुर जब दोनों वहाँ बातचीत कर रहे थे, उसी समय सभा में महर्षियों से घिरे हुए देवर्षि नारद कौरवों के सामने आकर खड़े हो गये और यह भयंकर वचन बोले- ‘आज से चौदहवें वर्ष में दुर्योधन के अपराध से भीम और अर्जुन के पराक्रम द्वारा कौरव कुल का नाश हो जायेगा’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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