द्विपन्चाशत्तम (52) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: द्विपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 23-43 का हिन्दी अनुवाद
इसी प्रकार अर्जुन भी श्रीकृष्ण के लिये अपने प्राणों तक का त्याग कर सकते हैं। मलय तथा दर्दुर पर्वत से वहाँ के राजा लोग सोने के घोड़ों में रखे हुए सुगन्धित चन्दन रस तथा चन्दन एवं अगुरु के ढेर भेंट के लिये लेकर आये थे। चोल और पाण्ड्य देशों के नरेश चमकीले मणि रत्न, सुवर्ण तथा महीन वस्त्र लेकर उपस्थित हुए थे, परंतु उन्हें भी भीतर जाने के लिये रास्ता नहीं मिला। सिंहल देश के क्षत्रियों ने समुद्र का सारभूत वैदूर्य, मोतियों के ढेर तथा हाथियों के सैकड़ों झूल अर्पित किये। वे सिंहल देशीय वीर मणियुक्त वस्त्रों से अपने शरीरों को ढके हुए थे। उनके शरीर का रंग काला था और उनकी आँखों के कोने लाल दिखायी देते थे। उन भेंट सामग्रियों को लेकर वे सब लोग दरवाजे पर रोके हुए खेड़े थे। ब्राह्मण, विजित क्षत्रिय, वैश्य तथा सेवा की इच्छा वाले शूद्र प्रसन्नतापूर्वक वहाँ उपहार अर्पित करते थे। सभी म्लेच्छ तथा आदि, मध्य और अन्त में उत्पन्न सभी वर्ण के लोग विशेष प्रेम और आदर के साथ युधिष्ठिर के पास भेंट लेकर आये थे। अनेक देशों में उत्पन्न और विभिन्न जाति के लोगों के अगामन से युधिष्ठिर के यज्ञ मण्डप में मानो यह सम्पूर्ण लोक ही एकत्र हुआ जान पड़ता था। मेरे शत्रुओं के घर में राजाओं द्वारा लाये हुए बहुत से छोटे-बड़े उपहरों को देखकर दु:ख से मुझे मरने की इच्छा होती थी। राजन्! पाण्डवों के वहाँ जिन लोगों का भरण-पोषण होता है, उनकी संख्या मैं आपको बता रहा हूँ। राजा युधिष्ठिर उन सबके लिये कच्चे-पक्के भोजन की व्यवस्था करते हैं। युधिष्ठिर के यहाँ तीन पद्म दस हजार हाथी सवार और घुड़ सवार, एक अर्बुद (दर करोड़) रथारोही तथा असंख्य पैदल सैनिक हैं। युधिष्ठिर के यज्ञ में कहीं कच्चा अन्न तौला जा रहा था, कहीं पक रहा था, कहीं परोसा जाता था और कहीं ब्राह्मणों के पुण्याहवाचन की ध्वनि सुनायी पड़ती थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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