महाभारत शल्य पर्व अध्याय 19 श्लोक 57-70

एकोनविंश (19) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 57-70 का हिन्दी अनुवाद

जब दुर्योधन ने देखा कि मेरी सेना भागने का निश्चय करके अभी अधिक दूर नहीं गयी है, तब उसने उन अत्यन्त घायल हुए सैनिकों को पुकारकर कहा- अरे! इस तरह भागने से क्या लाभ है? मैं पृथ्वी में या पर्वतों पर ऐसा कोई स्थान नहीं देखता, जहाँ जाने पर तुम्हें पाण्डव मार न सकें। अब तो इनके पास बहुत थोड़ी सेना शेष रह गयी है और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन भी अत्यन्त घायल हो चुके हैं, ऐसी दशा में यदि हम सब लोग साहस करके डटे रहें तो हमारी विजय अवश्य होगी। तुम पाण्डवों के अपराध तो कर ही चुके हो। यदि अलग-अलग होकर भागोगे तो पाण्डव पीछा करके तुम्हें अवश्य मार डालेंगे। ऐसी दशा में हमारे लिये संग्राम में मारा जाना ही श्रेयस्कर है। जितने क्षत्रिय यहाँ एकत्रित हुए हैं, वे सब कान खोलकर सुन लें-जब शूरवीर और कायर सभी को सदा ही मौत मार डालती है, तब ऐसा कौन मूर्ख मनुष्य है, जो क्षत्रिय कहलाकर भी निश्चित रूप से युद्ध नहीं करेगा। अतः क्रोध में भरे हुए भीमसेन के सामने डटे रहना ही हमारे लिये कल्याणकारी होगा। क्षत्रिय-धर्म के अनुसार युद्ध करने वाले वीर पुरुषों के लिये संग्राम में होने वाली मृत्यु ही सुखद है।। मरणधर्मा मनुष्य को कभी-न-कभी अवश्य मरना पड़ेगा। घर में भी उससे छुटकारा नहीं है। अतः क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करते हुए ही जो मृत्यु होती है, यही क्षत्रिय के लिये सनातन मृत्यु है। कौरवो! वीर पुरुष शत्रु को मारकर इह लोक में सुख भोगता है और यदि मारा गया तो वह परलोक में जाकर महान फल का भागी होता है; अतः युद्ध धर्म से बढ़कर स्वर्ग की प्राप्ति के लिये दूसरा कोई कल्याण मार्ग नहीं है। युद्ध में मारा गया वीर पुरुष थोड़ी ही देर में उन प्रसिद्ध पुण्य लोकों में जाकर सुख भोगता है।

दुर्योधन की यह बात सुनकर सब राजा उसका आदर करते हुए पुनः आततायी पाण्डवों का सामना करने के लिये लौट आये। उनके आक्रमण करते ही अपनी सेना का व्यूह बनाकर प्रहारकुशल, विजयाभिलाषी तथा बढ़े हुए क्रोध वाले पाण्डव शीघ्र ही उनका सामना करने के लिये आगे बढे़। पराक्रमी अर्जुन अपने त्रिलोक विख्यात गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए रथ के द्वारा युद्ध के लिये वहाँ आ पहुँचे। माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव और महाबली सात्यकि ने शकुनि पर धावा किया। ये सब लोग हर्ष और उत्साह में भरकर बड़ी सावधानी के साथ आपकी सेना पर वेगपूर्वक टूट पड़े।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में सकुलयुद्धविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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