सप्ततितम (70) अध्याय: विराट पर्व (वैवाहिक पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 15-28 का हिन्दी अनुवाद
राजन! ये महाराज जब कुरुदेश में रहते थे, उस समय इनके पीछे दस हजार वेगवान हाथी चला करते थे। इसी प्रकार अचछे घोड़ों से जुते हुए सवर्णमाला मण्डित तीस हजार रथ भी उस समय इनका अनुसरण करते थे। जैसे महर्षिगण इन्द्र की स्तुति करते हैं, उसी प्रकार पहले विशुद्ध मणिमय कुण्डल धारण किये आठ सौ सूत और मागध इनके गुण गाते थे। राजन! जैसे देवगण धनाध्यक्ष कुबेर का दरबार किया करते हैं, वैसे ही सब राजा और कौरव किंकरों की भाँति इनकी नित्य उपासना करते थे। इन महाभाग नरेश ने इस देश के सब राजाओं को वैश्यों की भाँति स्ववश ( अपने अधीन ) और विवश करके कर देने वाला बना दिया था।[1] अत्यन्त उत्तम व्रत का पालन करने वाले इन महाराज के यहाँ प्रतिदिन अट्ठासी हजार महाबुद्धिमान स्नातकों की जीविका चलती थी। ये बेढ़े, अनाथ, पंगु और अंधे मनुष्यों को भी स्नेह पूर्वक पालन करते थे। ये नरेश अपनी प्रजा की धर्म पूर्वक पुत्र की भाँति रक्षा करते थे। ये भूपाल धर्म और इन्द्रिय संयम में ततपर तथा क्रोध को काबू में लिये दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। ये बड़े कृपालु, ब्राह्मण भक्त और सत्यवक्ता हैं। इनके प्रताप से दुर्योधन शक्तिशाली होकर भी कर्ण, शकुनि तथा अपने गणों के साथ शीघ्र ही संतप्त होने वाला है। नरेश्वर! इनके सद्गुणों की गणना नहीं की जा सकती। ये पाण्डु नन्दन नित्य धर्म परायण तथा दयालु स्वभाव के हैं। राजन! समस्त राजाओं के शिरोमणि पाण्डु नन्दन महाराज युधिष्ठिर इस प्रकार सर्वोत्तम गुणों से युक्त होकर भी राजोचित आसन के अणिकारी क्यों नहीं हैं? इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत वैवाहिक पर्व में पाण्डव प्राकट्य विषयक सत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अर्थात सब राजा इन्हें कर दिया करते थे।
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