पंचम (5) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: पन्चम अध्याय: श्लोक 30-36 का हिन्दी अनुवाद
परंतप पाण्डव इस प्रकार उस शमी वृक्ष पर शव बाँधकर उस वन में गाय चराने वाले ग्वालों और भेड़ पालने वाले गड़रियों से शव बाँधने का कारण बताते हुए कहते हैं- ‘यह एक सौ अस्सी वर्ष की हमारी माता है। हमारे कुल का यह धर्म है, इसलिये ऐसा किया है। हमारे पूर्वज भी ऐसा ही करते आये हैं।'[1] इस प्रकार शत्रुओं का संहार करने वाले वे कुन्तीपुत्र नगर के निकट आ पहुँचे। तब युधिष्ठिर ने क्रमशः पाँचों भाइयों के जय, जयन्त, विजय, जयत्सेन और जयद्वल- ये गुप्त नाम रक्खे। तत्पश्चात् उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तेरहवें वर्ष का अज्ञातवास पूर्ण करने के लिये मत्स्य राष्ट्र के उस विशाल नगर में प्रवेश किया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डवप्रवेशपर्व में नगर प्रवेश के लिये अस्त्र स्थापना विषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाण्डव लोग शव बँधी हुई शाखा की ओर अंगुली से संकेत करके कहते थे- 'यह हमारी माता है।' वे अपने आयुधों की रक्षा करने के कारण शमी को ही अपनी माता मानते थे और उसी की ओर उनका वास्तविक संकेत था। शव-बंधन के व्यास से वे अस्त्र संरक्षण को ही पूर्वजों द्वारा आचरित कुलधर्म घोषित करते थे।
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