महाभारत विराट पर्व अध्याय 57 श्लोक 14-28

सप्तपंचाशत्तम (57) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 14-28 का हिन्दी अनुवाद


रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य ने उस शंखनाद से तीनों लोकों को गुँजाकर उस समय हाथ में धनुष ले लिया और उसकी प्रत्यन्चा खींचकर टंकार ध्वनि की। वे दोनों महारथी बड़े पराक्रमी और सूर्य के समान तेजस्वी थे; अतः युद्ध करने के लिये खड़े हुए वे दोनों वीर शरत्काल के दो मेघों की भाँति शोभा पाने लगे। तदनन्तर कृपाचार्य ने मर्मस्थान को विदीर्ण करने वाले दस तीखे बाणों द्वारा शत्रुवीरों के संहारक कुन्ती नन्दन अर्जुन को तुरंत बींध डाला। तब अर्जुन ने भी अपने विश्वविख्यात उत्तम आयुध गाण्डीव को ( कान तक) खींचकर बहुत से मर्मभेदी नाराच छोड़े। किंतु अर्जुन के द्वारा चलाये हुए उन रक्त पीने वाले नाराचों को अपने पास आने से पहले ही कृपाचार्य ने तीखे बाण मारकर उनके सैंकड़ों और हजारों टुकड़े कर डाले।

तब सामर्थ्यशाली महारथी कुन्ती पुत्र अर्जुन ने क्रोध में भरकर बाण चलाने की विचित्र पद्धतियों का प्रदर्शन करते हुए बाणों की झड़ी लगाकर सम्पूर्ण दिशा विदिशाओं को ढँक दिया और आकाश को सब ओर से एक मात्र अन्धकार में निमग्न सा कर दिया। तदनन्तर अचिन्त्य मन बुद्धि वाले पृथा पुत्र अर्जुन ने सैंकड़ों बाण मारकर कृपाचार्य को ढँक दिया। आग की लपटों के समान जलाने वाले उन तीखे बाणों से पीड़ित होने पर कृपाचार्य को बड़ा क्रोध हुआ। तब उन्होंने अनुपम पराक्रमी महात्मा पृथा पुत्र को युद्ध में तुरंत ही दस हजार बाणों से पीड़ित करके बड़े जोर से गर्जना की। तब वीर अर्जुन ने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए झुकी हुई गाँठ वाले सुनहरे पर्वाग्र ( फल ) वाले चार बाणों द्वारा बड़ी उतावली से कृपाचार्य के चारों घोड़ों को बींध डाला। वे चारों बाण बड़े तीखे और उत्तम थे। विषाग्नि से जलते हुए सर्पों की भाँति उन तेज बाणों की मार खाकर वे सभी घोड़े सहसा उछल पड़े।

इससे कृपाचार्य अपने स्थान से गिर गये। कृपाचार्य को स्थान से गिरा हुआ देख शत्रुवीरों का नाश करने वाले कुरुनन्दन अर्जुन ने उनके गौरव की रक्षा करते हुए उन पर बाणों से आघात नहीं किया। किंतु कृपाचार्य ने पुनः अपना सथान ग्रहण कर लेने पर तुरंत ही सफेद चील के पंखो से युक्त दस बाणों का प्रहार करके सव्यसाची अर्जुन को बींध डाला। तब अर्जुन ने एक तीखे भल्ल नामक बाण द्वारा कृपाचार्य का धनुष काट डाला और पुनः उनके दस्ताने को नष्ट कर दिया। उसके बाद पार्थ ने मर्म भेदी तीखे बाणों द्वारा उनके कवच को भी छिन्न भिन्न कर दिया, किंतु उनके शरीर को तनिक भी कष्ट नहीं पहुँचाया। कवच से मुक्त होने पर कृपाचार्य का शरीर इस प्रकार सुशोभित हुआ, मानो समय पर केंचुल छूटने के बाद सर्प का शरीर सेशाुभित हो रहा हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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