महाभारत विराट पर्व अध्याय 33 श्लोक 35-54

त्रयस्त्रिंश (33) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व :त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 35-54 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर महारथी सहदेव त्रिगर्तों की उस महासेना का संहार करके अत्यंत उग्र रूप धारण किये हाथ में धनुष ले सुशर्मा पर चढ़ आये। तत्पश्चात् महारथी राजा युधिष्ठिर भी बड़ी उतावली के साथ सुशर्मा पर धावा बोलकर उसे बाणों द्वारा बारंबार बींधने लगे। तब सुशर्मा ने भी अत्यनत कुपित हो बड़ी फुर्ती के साथ नौ बाणों से राजा युधिष्ठिर को और चार बाणों से उनके चारों घोड़ों को बींध डाला। राजन्! फिर तो शीघ्रता करने वाले कुन्तीपुत्र भीम ने सुशर्मा के पास पहुँचकर उत्तम बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला। साथ ही उसके पृष्ठरक्षकों को भी मारकर कुपित हो उसके सारथि को भी रथ से नीचे गिरा दिया। सुशर्मा को रथहीन हुआ देखकर राजा विराट के चक्ररक्षक सुप्रसिद्ध वीर मदिराक्ष भी वहाँ आ पहुँचे और त्रिगर्तनरेश पर बाणों से प्रहार करने लगे। इसी बीच में बलवान् राजा विराट सुशर्मा के रथ से कूद पडत्रे और उसकी गदा लेकर उसी की ओर दौड़े। उस समय हाथ में गदा लिये राजा विराट बूढ़े होने पर भी तरुण के समान रणभूमि में विचर रहे थे। इसी बीच में मौका पाकर त्रिगर्तराज भागने लगा।

उसे पलायन करते देख भीमसेन बोले- ‘राजकुमार! लौअ आओ। तुम्हारा युद्ध से पीठ दिखाकर भागना उचित नहीं है। ‘इसी पराक्रम के भरोसे तुम विराट की गौओं को बलपूर्वक कैसे ले जाना चाहते थे ? अपने सेवकों को शत्रुओं के बीच में छोड़कर क्यों भागते और विषाद करते हो ?’। भीमसेन के ऐसा कहने पर रथियों के यूथ का अधिपति बलवान् सुशर्मा ‘खड़ा रह, खड़ा रह’, ऐसा कहते हुए सहसा भीमसेन पर टूट पड़ा। परंतु पाण्डुननदन भीम तो भीम जैसे ही थे; वे तनिक भी व्यग्र नहीं हुए; अपितु रथ्र से कुदकर सुशर्मा के प्राण लेने के लिये बड़े वेग से उसकी ओर दौड़े। तब सुशर्मा रि भाग चला और पराक्रमी भीम त्रिगर्त राजा को पकड़ने के लिये उसी प्रकार उसका पीछा करने लगे, जैसे सिंह छोटे मृगों को पकड़ने के लिये जाता है।

सुशर्मा के पास पहुँचकर भीम ने उसके केश पकड़ लिये और क्रोध पूर्वक उसे उठाकर पुथ्वी पर दे मारा। तत्पश्चात् उसे वहीं रगड़ने लगे। इससे सुशर्मा विलाप करने लगा। उस समय भीम ने उसके मस्तक पर लात मारी और उसके पेट को घुटनों से दबाकर ऐसा घूँसा माराकि उसके भारी आघात से पीड़ित होकर राजा सुशर्मा मूर्च्छित हो गया। त्रिगर्तों का महारथी वीर सुशर्मा जब रथहीन होकर कैद कर लिया गया, तब वह सारी त्रिगर्तसेना भय से व्याकुल हो तितर-बितर हो गयी। तदनन्तर पाण्डु के महारथी पुत्र सुशर्मा को परासत करने के पश्चात् सब गौओं को लौटाकर और लूट का सारा धन वापस लेकर चले। वे सभी अपने बाहुबल से सम्पन्न, लज्जाशील, संयमपूर्वक व्रतपालन में तत्पर, महात्मा तथा विराटका सारा क्लेश दूर करने वाले थे। जब वे सब राजा के सामने आकर खडत्रे हुए, तब भीमसेन बोले- ‘यह पापाचारी सुशर्मा मेरे हाथ से छूटकर जीवित रहने योग्य तो नहीं है; परंतू में कर ही क्या सकता हूँ , हमारे महाराज सदा के दयालु हैं’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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