नवम (9) अध्याय: वन पर्व (अरण्य पर्व)
महाभारत: वन पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 17-23 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रसंग में सुरभि ने जैसा कहा है, वह ठीक है, कौरव और पाण्डव सभी मिलकर तुम्हारे ही पुत्र हैं। परंतु राजन! सब पुत्रों में जो हीन हों, दयनीय दशा में पड़े हों, उन्हीं पर अधिक कृपा होनी चाहिये। वत्स! जैसे पाण्डु मेरे पुत्र हैं, वैसे ही तुम भी हो, उसी प्रकार महाज्ञानी विदुर भी हैं। मैंने स्नेहवश ही तुम से ये बातें कही हैं। भारत! दीर्घकाल से तुम्हारे एक सौ एक पुत्र हैं; किंतु पाण्डु के पाँच ही पुत्र देखे जाते हैं। वे भी भोले-भाले, छल-कपट से रहित हैं और अत्यन्त दुःख उठा रहे हैं। ‘वे कैसे जीवित रहेंगे और कैसे वृद्धि को प्राप्त होंगे?‘ इस प्रकार कुन्ती के उन दीन पुत्रों के प्रति सोचते हुए मेरे मन में बड़ा संताप होता है। राजन! यदि तुम चाहते हो कि समस्त कौरव यहाँ जीवित रहें, तो तुम्हारा पुत्र दुर्योधन पाण्डवों से मेल करके शान्तिपूर्वक रहे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अरण्यपर्व में सुरभि-उपाख्यान विषयक नवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|