महाभारत वन पर्व अध्याय 83 श्लोक 145-169

त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

Prev.png

महाभारत: वन पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 145-169 का हिन्दी अनुवाद


कुरुक्षेत्र तीर्थ को सबसे पवित्र कहते हैं, कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है सरस्वती नदी, सरस्वती से भी पवित्र है उसका तीर्थ और उन तीर्थों से भी पवित्र हैं पृथूदक। वह सब तीर्थों में उत्तम है, जो पृथूदक तीर्थ में जपपरायण होकर अपने शरीर का त्याग करता है, उसे पुनमृर्त्यु का भय नहीं होता। यह बात भगवान् सनत्कुमार तथा महात्मा व्यास ने कही है। राजन्! इस प्रकार तीर्थयात्री नियमपूर्वक पृथूदक तीर्थ की यात्रा करे। कुरुश्रेष्ठ! पृथूदक से श्रेष्ठतम तीर्थ दूसरा कोई नहीं है। वही मेध्य, पवित्र और पावन है, इसमें संशय नहीं है। भरतश्रेष्ठ! वहीं मधुस्वत तीर्थ है। राजन्! उसमें स्नान करने से मनुष्य को सहस्र गोदान का फल मिलता है।

राजेन्द्र! तदनन्तर क्रमशः लोकविख्यात सरस्वती अरुणासंगम नामक पवित्र तीर्थ की यात्रा करे। वहाँ स्नान करके तीन रात उपवास करने से ब्रह्महत्या से छुटकारा मिल जाता है। इतना ही नहीं, वह मनुष्य अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों से मिलने वाले फल को भी पा लेता है। भरतश्रेष्ठ! वह अपने कुल की सात पीढ़ियों को पवित्र कर देता है।। कुरुकुलशिरोमणे! वहीं अर्धकील नामक तीर्थ है, जिसे पूर्वकाल में दर्भी मुनि ने ब्राह्मणों पर कृपा करने के लिये प्रकट किया था। वहाँ व्रत, उपनयन और उपवास करने से मनुष्य कर्मकाण्ड और मन्त्रों का ज्ञाता ब्राह्मण होता है, इसमें संशय नहीं है। नरश्रेष्ठ! क्रियाविहीन और मन्त्रहीन पुरुष भी उसमें स्नान करके व्रता का पालन करने से विद्वान होता है, यह बात प्राचीन महर्षियों ने प्रत्यक्ष देखी है। दर्भी मुनि वहाँ चार समुद्रों को भी ले आये हैं। नरश्रेष्ठ! उसमें स्नान करने वाला मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और उसे चार हजार गोदान का भी फल प्राप्त होता है। धर्मज्ञ! तदनन्तर वहाँ से शतसहस्र और साहस्रक तीर्थों की यात्रा करे। वे दोनों लोकविख्यात तीर्थ हैं। उसमें स्नान करने से मनुष्य को सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है। वहाँ किये हुए दान अथवा उपवास का महत्त्व अन्यत्र से सहस्र गुना अधिक है।

राजेन्द्र! वहाँ से उत्तम रेणुकातीर्थ की यात्रा करे। पहले उस तीर्थ में स्नान करे; फिर देवताओं और पितरों की पूजा में तत्पर हो जाये। इससे तीर्थयात्री सब पापों से शुद्ध हो अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है। विमोचनतीर्थ में स्नान और आचमन करके क्रोध और इन्द्रियों को काबू में रखने वाला मनुष्य प्रतिग्रहजनित सारे दोषों से मुक्त हो जाता है। वहाँ योगेश्वर एवं वृषभध्वज स्वयं भगवान् शिव निवास करते हैं। उन देवेश्वर की पूजा करके मनुष्य वहाँ जाने मात्र से सिद्ध हो जाता है। वहीं तैजस नामक वरुण देवता सम्बन्धी तीर्थ है, जो अपने तेज से प्रकाशित होता है। जहाँ ब्रह्मा आदि देवताओं तथा तपस्वी ऋषियों ने कार्तिकेय को देवसेनापति के पद पर अभिषिक्त किया था।

कुरुश्रेष्ठ! तैजसतीर्थ के पूर्वभाग में कुरुतीर्थ है। जो मनुष्य ब्रह्मचर्य पालन और इन्द्रियसंयमपूर्वक कुरुतीर्थ में स्नान करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर ब्रह्मलोक में जाता है। तदनन्तर नियमपरायण हो नियमित भोजन करते हुए स्वर्गद्वार को जाये। उस तीर्थ के सेवन से मनुष्य स्वर्गलोक पाता और ब्रह्मलोक में जाता है। नरेश्वर! तदनन्तर तीर्थसेवी पुरुष अनरकतीर्थ में जाये। राजन् उसमें स्नान करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता। महीपते! पुरुषसिंह! वहाँ स्वंय ब्रह्मा नारायण आदि देवताओं के साथ नित्य निवास करते हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः