महाभारत वन पर्व अध्याय 66 श्लोक 20-26

षट्षष्टितम (66) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

Prev.png

महाभारत: वन पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 20-26 का हिन्दी अनुवाद


‘राजन्! अब आप यहाँ से अपने को बाहुक नामक सूत बताते हुए राजा ऋतुपर्ण के समीप जाइये। वे द्यूतविद्या में बड़े निपुण हैं। निषधेश्वर! आप आज ही रमणीय अयोध्यापुरी को चले जाइये। इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न श्रीमहान् राजा ऋतुपर्ण आप से अश्वविद्या का रहस्य सीखकर बदले में आपको द्यूतक्रीड़ा का रहस्य बतलायेंगे और आपके मित्र भी हो जायेंगे। जब आप द्यूतविद्या के ज्ञाता होंगे, तब पुनः कल्याणभागी हो जायेंगे। मैं सच कहता हूं, आप एक ही साथ अपनी पत्नी, दोनों संतानों तथा राज्य को प्राप्त कर लेंगे; अतः अपने मन में चिंता न कीजिये।

नरेश्वर! जब आप अपने (पहले वाले) रूप को देखना चाहें, उस समय मेरा स्मरण करें और इस कपड़े को ओढ़ लें। इस वस्त्र से आच्छादित होते ही आप अपना पहला रूप प्राप्त कर लेंगे।’

ऐसा कहकर नाग ने उन्हें दो दिव्य वस्त्र प्रदान किये।

कुरुनन्दन युधिष्ठिर! इस प्रकार राजा नल को संदेश और वस्त्र देकर नागराज कर्कोटक वहीं अन्तर्धान हो गया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में नल-कर्कोटक संवाद विषयक छाछठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः