चतु:पंचाशत्तम (54) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-31 का हिन्दी अनुवाद
इन्द्र के ऐसा पूछने पर नारद जी ने उत्तर दिया। नारद बोले- 'मघवन्! मैं वह कारण बताता हूं, जिससे राजा लोग आजकल यहाँ नहीं दिखायी देते, सुनिये। विदर्भ नरेश भीम के यहाँ दमयन्ती नाम से प्रसिद्ध एक कन्या उत्पन्न हुई है, जो मनोहर रूप-सौन्दर्य में पृथ्वी की सम्पूर्ण युवतियों को लांघ गयी है। इन्द्र! अब शीघ्र ही उसका स्वयंवर होने वाला है, उसी में सब राजा और राजकुमार जा रहे हैं। बल और वृत्रासुर के नाशक इन्द्र! दमयन्ती सम्पूर्ण जगत् का एक अद्भुत रत्न है। इसलिये सब राजा उसे पाने की विशेष अभिलाषा रखते हैं।' यह बात हो ही रही थी कि देवश्रेष्ठ लोकपालगण अग्नि सहित देवराज के समीप आये। तदनन्तर उन सब ने नारद जी की ये विशिष्ट बातें सुनीं। सुनते ही वह सब के सब हर्षोल्लास से परिपूर्ण हो बोले- 'हम लोग भी उस स्वयंवर में चलें’। महाराज! तदनन्तर वे सब देवता अपने सेवकगणों और वाहनों के साथ विदर्भ देश में गये, समस्त भूपाल एकत्र हुए थे। कुन्तीनन्दन! उदारहृदय राजा नल भी विदर्भ नगर में समस्त राजाओं का समागम सुनकर दमयन्ती में अनुरक्त हो बहां गये। उस समय देवताओं ने पृथ्वी पर मार्ग में खडे़ हुए राजा नल को देखा। रूप-सम्पति की दृष्टि से वे साक्षात् मूर्तिमान कामदेव से जान पड़ते थे। सूर्य के समान प्रकाशित होने वाले महाराज नल को देखकर वे लोकपाल उनके रूप, वैभव से चकित हो दमयन्ती को पाने का संकल्प छाड़ बैठे। राजन्! तब उन देवताओं ने अपने विमान को आकाश में रोक दिया और वहाँ से नीचे उतर कर निषध नरेश से कहा- ‘निषध देश के महाराज नरश्रेष्ठ नल! आप सत्यव्रती हैं, हम लोगों की सहायता कीजिये। हमारे दूत बन जाइये’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत् वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में इन्द्र-नारदसंवाद विषयक चौवनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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