चत्वारिंश (40) अध्याय: वन पर्व (कैरात पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 20-28 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन के पाशुपतास्त्र ग्रहण करते ही पर्वत, वन, वृक्ष, समुद्र, वनस्थली, ग्राम, नगर तथा आकरों (खानों) सहित सारी पृथ्वी कांप उठी। उस शुभ मुहूर्त्त के आते ही शंख और दुन्दुभियों के शब्द होने लगे। सहस्रों भेरियां बज उठीं। आकाश में वायु के टकराने का महान् शब्द होने लगा। तदनन्तर वह भयंकर अस्त्र मूर्तिमान हो अग्नि के समान प्रज्वलित तेजस्वी रूप से अमित पराक्रमी पाण्डुनन्दन अर्जुन के पार्श्वभाग में खड़ा हो गया। यह बात देवताओं और दानवों ने प्रत्यक्ष देखी। भगवान् शंकर के स्पर्श करने से अमित तेजस्वी अर्जुन के शरीर में जो कुछ भी अशुभ था, वह नष्ट हो गया। उस समय भगवान् त्रिलोचन ने अर्जुन को यह आज्ञा दी कि ‘तुम स्वर्गलोक को जाओ’। राजन्! तब अर्जुन ने भगवान् के चरणों से मस्तक रखकर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर उनकी ओर देखने लगे। तत्पश्चात् देवताओं के स्वामी, जितेन्द्रिय एवं परम बुद्धिमान् कैलासवासी उमावल्लभ भगवान् शिव ने पुरुषप्रवर अर्जुन को वह महान् गाण्डीव धनुष दे दिया, जो दैत्यों और पिशाचों का संहार करने वाला था। जिसके तट, शिखर और कन्दराएं हिमाच्छादित होने के कारण श्वेत दिखायी देती हैं, पक्षी और महर्षिगण सदा जिसका सेवन करते हैं, उस मंगलमय गिरिश्रेष्ठ इन्द्रकील को छोड़कर भगवान् शंकर भगवती उमादेवी के साथ अर्जुन के देखते-देखते आकाश मार्ग में चले गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत कैरातपर्व में शिवप्रस्थान विषयक चालीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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