त्रिषष्टयधिकद्विशततम (263) अध्याय: वन पर्व (द्रौपदीहरण पर्व )
महाभारत: वन पर्व: त्रिषष्टयधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 42-49 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! भगवान् श्रीकृष्ण का यह सन्देश सुनकर द्रौपदी सहित पाण्डवों का चित्त स्वस्थ हुआ। उनकी सारी चिन्ता दूर हो गयी और वे भगवान् से इस प्रकार बोले- ‘विभो! गोविन्द! तुम्हें अपना सहायक और संरक्षक पाकर हम बड़ी-बड़ी दुस्तर विपत्तियों से उसी प्रकार पार हुए हैं, जैसे महासागर में डूबते हुए मनुष्य जहाज का सहारा पाकर पार हो जाते हैं। तुम्हारा कल्याण हो। इसी प्रकार भक्तों का हितसाधन किया करो।’ पाण्डवों के इस प्रकार कहने पर भगवान् श्रीकृष्ण द्वारिकापुरी को चले गये। महाभाग जनमेजय! तत्पश्चात द्रौपदी सहित पाण्डव प्रसन्नचित्त हो वहाँ एक वन से, दूसरे वन में भ्रमण करते हुए सुख से रहने लगे। राजन्! यहाँ तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, वह सब मैंने तुम्हें बतला दिया। इस प्रकार दुरात्मा धृतराष्ट्रपुत्रों ने वनवासी पाण्डवों पर अनेक बार छल-कपट का प्रयोग किया, परंतु वह सब व्यर्थ हो गया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत द्रौपदीहरणपर्व में दुर्वासा की कथाविषयक दो सौ तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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