महाभारत वन पर्व अध्याय 240 श्लोक 22-31

चत्‍वारिंशदधिकद्विशततमम (240) अध्‍याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: चत्‍वारिंशदधिकद्विशततमम अध्‍याय: श्लोक 22-31 का हिन्दी अनुवाद


वे उन दिनों अप्‍सराओं तथा देवकुमारों के साथ विभिन्न स्‍थानों में भ्रमण करते थे। उन्‍होंने स्‍वयं ही क्रीड़ा विहार के लिये उस सरोवर को सब ओर से घेर लिया था। राजन्! उस सरोवर को गन्‍धर्वराज ने घेर रक्‍खा है, यह देखकर वे राजसेवक जहाँ राजा दुर्योधन था, वहाँ लौट गये।

जनमेजय! अपने सेवकों का कथन सुनकर राजा दुर्योधन ने युद्ध के लिये उन्‍मत्त रहने वाले सैनिकों को यह आदेश देकर भेजा कि ‘गन्‍धर्वों को वहां से मार भगाओ’।

राजा का यह आदेश सुनकर उसकी सेना के नायक द्वैतवन सरोवर के समीप जाकर गन्‍धर्वों से इस प्रकार बोले- ‘गन्‍धर्वो! महाराज धृतराष्‍ट्र के बलवान् पुत्र राजा दुर्योधन यहाँ विहार करने की इच्‍छा से पधार रहे हैं। तुम लोग उनके लिये यह स्‍थान ख़ाली करके दूर चले जाओ’।

राजन्! उनके ऐसा कहने पर गन्‍धर्व जोर-जोर से हंसने लगे और उन राजसेवकों को उत्‍तर देते हुए उनसे इस प्रकार कठोर वाणी में बोले- ‘तुम्‍हारा राजा दुर्योधन मूर्ख है। उसे तनिक भी चेत नहीं है; क्‍योंकि वह हम देवलोकवासी गन्‍धर्व को भी बनियों के समान समझकर इस प्रकार आज्ञा दे रहा है। तुम लोगों की भी बुद्धि मारी गयी है। इसमें संदेह नहीं कि तुम सब के सब मरना चहाते हो। तभी तो उस दुर्योधन के कहने से तुम इस प्रकार हम से विचारहीन होकर बातें कर रहे हो। या तो तुम लोग तुरंत वहीं लौट जाओ, जहाँ तुम्‍हारा राजा दुर्योधन रहता है या यदि ऐसा नहीं करना है तो अभी धर्मराज के नगर (यमलोक) की राह लो’।

गन्‍धर्वों के ऐसा कहने पर राजा के सेनानायक योद्धा वहीं भाग गये, जहाँ धृतराष्‍ट्रपुत्र राजा दुर्योधन स्‍वयं विराजमान था।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत घोषयात्रापर्व में गन्‍धर्व-दुर्योधन संवाद विषयक दो सौ चाळीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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