अष्टात्रिंशदधिकद्विशततम (238) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: अष्टात्रिंशदधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 20-24 का हिन्दी अनुवाद
घोषयात्रा का निश्चय करने के लिये इस प्रकार की बातें करते हुए उन दोनों सुहृदों से गान्धारराज शकुनि ने हंसते हुए से कहा- ‘द्वैतवन में जाने का यह उपाय मुझे सर्वथा निर्दोष दिखाई दिया है। इसके लिये राजा हमें अवश्य आज्ञा दे देंगे और वहाँ जाकर हमें क्या-क्या करना चाहिये-इसके विषय में कुछ समझायेंगे भी। नरेश्वर! गौओं के रहने के सभी स्थान इस समय द्वैतवन में ही हैं और वहाँ तुम्हारे पधारने की सदा प्रतीक्षा की जाती है; अत: घोषयात्रा के बहाने हम वहाँ निसन्देह चल सकेंगे।' तदनन्तर वे सब के सब अपनी योजना को सफल होती देख हंसने और एक-दूसरे के साथ हाथ पर प्रसन्नता से ताली देने लगे। फिर यही निश्चय करके वे तीनों कुरुश्रेष्ठ राजा धृतराष्ट्र से मिले।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत घोषयात्रापर्व में घोषयात्रा के सम्बन्ध में परामर्शविषयक दो सौ अड़तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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