महाभारत वन पर्व अध्याय 190 श्लोक 74-97

नवत्यधिकशततम (190) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: नवत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 74-97 का हिन्दी अनुवाद


इस तरह उथल-पुथल मच जाने पर संसार में कोई मर्यादा नहीं रह जायेगी। शिष्य गुरु के उपदेश पर नहीं चलेंगे। वे उल्टे उनका अहित करेंगे। अपने कुल का आचार्य भी यदि निर्धन हो तो उसे निरन्तर शिष्यों की डाँट-फटकार सुननी पड़ेगी। मित्र, सम्बन्धी या भाई-बन्धु धन के लालच से ही अपने पास रहेंगे। युगान्तकाल आने पर समस्त प्राणियों का अभाव हो जायेगा। सारी दिशाएं प्रज्वलित हो उठेंगी और नक्षत्रों की प्रभा विलुप्त हो जायेगी। ग्रह उल्टी गति से चलने लगेंगे। हवा इतनी जोर से चलेगी कि लोग व्याकुल हो उठेंगे। महान् भय की सूचना देने वाले उल्कापात बार-बार होते रहेंगे। एक सूर्य तो है ही, छः और उदय होंगे और सातों एक साथ तपेंगे। सब ओर बिजली की भयानक गड़गड़ाहट होगी, सब दिशाओं में आग लगेगी। उदय और अस्त के समय सूर्य राहु से ग्रस्त दिखायी देगा। भगवान् इन्द्र समय पर वर्षा नहीं करेंगे। युगान्तकाल उपस्थित होने पर बोयी हुई खेती उगेगी ही नहीं; स्त्रियां कठोर स्वभाव वाली और सदा कटुवादिनी होंगी। उन्हें रोना ही अधिक पसंद होगा। वे पति की आज्ञा में नहीं रहेंगी। युगान्तकाल में पुत्र माता-पिता की हत्या करेंगे। नारियां अपने बेटों से मिलकर पति की हत्या करा देंगी।

महाराज! अमावस्या के बिना ही राहु सूर्य पर ग्रहण लगायेगा। युगान्तकाल आने पर सब ओर आग भी जल उठेगी। उस समय पथियों को मांगने पर कहीं अन्न, जल या ठहरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा। वे सब ओर से कोरा जवाब पाकर निराश हो सड़कों पर ही सो रहेंगे। युगान्तकाल उपस्थित होने पर बिजली की कड़क के समान कड़वी बोली बोलने वाले कौवे, हाथी, शकुन, पशु और पक्षी आदि बड़ी कठोर वाणी बोलेंगे। उस समय के मनुष्य अपने मित्रों, सम्बन्धियों, सेवकों तथा कुटुम्बीजनों को भी अकारण त्याग देंगे। प्रायः लोग स्वदेश छोड़कर दूसरे देशों, दिशाओं, नगरों और गांवों का आश्रय लेंगे और 'हा तात! हा पुत्र!' इत्यादि रूप से अत्यन्त दुःखद वाणी में एक-दूसरे को पुकारते हुए इस पृथ्वी पर विचरेंगे। युगान्तकाल में संसार की यही दशा होगी। उस समय एक ही साथ समस्त लोकों का भयंकर संहार होगा। तदन्तर कालान्तर में सत्ययुग का आरम्भ होगा और फिर क्रमशः ब्राह्मण आदि वर्ण प्रकट होकर अपने प्रभाव का विस्तार करेंगे। उस समय लोक के अभ्युदय के लिये पुनः अनायास दैव अनुकूल होगा।

जब सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति एक साथ पुष्य नक्षत्र एवं तदनुरूप एक राशि कर्क में पदार्पण करेंगे, तब सत्ययुग का प्रारम्भ होगा। उस समय मेघ समय पर वर्षा करेगा। नक्षत्र शुभ एवं तेजस्वी हो जायेंगे। ग्रह प्रदक्षिणा भाव से अनुकूल गति का आश्रय ले अपने पथ पर अग्रसर होंगे। उस समय सबका मंगल होगा। देश में सुकाल आ जायेगा। आरोग्य का विस्तार होगा तथा रोग-व्याधि का नाम भी नहीं रहेगा। राजन्! युगान्त के समय काल की प्रेरणा से सम्भल नामक ग्राम में किसी ब्राह्मण के मंगलमय गृह में एक महान् शक्तिशाली बालक प्रकट होगा, जिसका नाम होगा विष्णुयशा कल्कि। वह महान् बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न महात्मा, सदाचारी तथा प्रजावर्ग का हितैषी होगा। (वह बालक ही भगवान् का कल्की अवतार कहलायेगा)। मन के द्वारा चिन्तन करते ही उसके पास इच्छानुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जायेंगे। वह धर्म-विजयी चक्रवर्ती राजा होगा। वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण, दुःख से व्याप्त हुए इस जगत् को आनन्द प्रदान करेगा। कलियुग का अन्त करने के लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा। वही सम्पूर्ण कलियुग का संहार करके नूतन सत्ययुग का प्रवर्तक होगा। वह ब्राह्मणों से घिरा हुआ सर्वत्र विचरेगा और भूमण्डल में सर्वत्र फैले हुए नीच स्वभाव वाले सम्पूर्ण म्लेच्छों का संहार कर डालेगा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्यापर्व में भविष्य वर्णंन विषयक एक सौ नब्बेवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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