महाभारत वन पर्व अध्याय 134 श्लोक 37-41

चतुस्‍त्रिं‍शदधि‍कशततम (134) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: चतुस्‍त्रिं‍शदधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 37-41 का हिन्दी अनुवाद


लोमश जी कहते हैं- राजन! बन्‍दी द्वारा जल में डुबोये हुए वे सभी ब्राह्मण जब वहाँ अधि‍क तेजस्‍वी रूप से प्रकट हो गये, तब राजा की आज्ञा लेकर बन्‍दी स्‍वयं ही समुद्र के जल में समा गया।

अष्टावक्र अपने पि‍ता की पूजा करके स्‍वयं भी दूसरे ब्राह्मणों द्वारा यथोचि‍त रूप से सम्‍मानि‍त हुए और इस प्रकार बन्‍दी पर वि‍जय पाकर पि‍ता एवं मामा के साथ अपने श्रेष्ठ आश्रम पर लौट आये। तदनन्‍तर पि‍ता कहोड़ ने अष्टावक्र की माता सुजाता के नि‍कट पुत्र अष्टावक्र से कहा- ‘बेटा! तुम शीघ्र ही इस समंगा नदी में स्‍नान के लि‍ये प्रवेश करो।

पि‍ता की आज्ञा के अनुसार उन्‍होंने उस नदी में स्‍नान के लि‍ये प्रवेश कि‍या। उसके जल का स्‍पर्श होने पर तत्‍काल ही उनके सब अंग सीधे हो गये।

युधिष्ठिर! इसी से समंगा नदी पुण्‍यमयी हो गयी। इसमें स्‍नान करने वाला मनुष्‍य सब पापों से मुक्‍त हो जाता है। तुम भी स्‍नान, पान (आचमन) और अवगाहन के लि‍ये अपनी पत्‍नी और भाईयों के साथ इस नदी में प्रवेश करो।

अजमीढकुलभूषण कुन्‍तीनन्‍दन! तुम वि‍श्‍वासपूर्वक अपने भाईयों और ब्राह्मणों के साथ यहाँ एक रात सुख से रहकर कल से पुन: मेरे साथ पवि‍त्र कर्मों में अवि‍चल श्रद्धा भक्‍ति‍ रखते हुए दूसरे-दूसरे पुण्‍यतीर्थों की यात्रा करना।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में अष्‍टावक्रीयोपाख्‍यान विषयक एक सौ चौति‍सवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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