त्रिषष्टितम (63) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 21-33 का हिन्दी अनुवाद
उस समय बड़ी भारी गदा उठाये हुए भयंकर पराक्रमी भीमसेन को देखकर भीष्म जी सहसा वहाँ पहुँचे। वे सूर्य समान तेजस्वी तथा पहियों के गम्भीर घोष से युक्त विशाल रथ पर आरूढ़ हो बरसते हुए मेघ के समान बाणों की वर्षा से सबको आच्छादित करते हुए वहाँ आये थे। मुंह फैलाये हुए यमराज के समान भीष्म जी को आते देख महाबाहु भीमसेन अमर्ष में भरकर उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े। उसी समय शिनिवंश के प्रमुख वीर सत्यप्रतिज्ञ सात्यकि अपने सुदृढ़ धनुष से शत्रुओं का संहार करते और आपके पुत्र की सेना को कँपाते हुए पितामह भीष्म पर चढ़ आये। भारत! चांदी के सामन श्वेत घोड़ों द्वारा जाते और सुन्दर पंखयुक्त तीखे बाणों की वर्षा करते हुए सात्यकि को उस समय आपके समस्त सैनिकगण रोक न सके। केवल अलम्बुष नामक राक्षस ने उस समय उन्हें दस बाणों से घायल किया। तब शिनि के पौत्र ने भी उस राक्षस को चार बाणों से बींधकर बदला चुकाया और रथ के द्वारा भीष्म पर धावा किया। वृष्णि वंश के श्रेष्ठ पुरुष सात्यकि आकर शत्रुओं के बीच में विचर रहे हैं और युद्धस्थल में कौरव सेना के मुख्य-मुख्य वीरों को भगाते हुए बारंबार गर्जना कर रहे हैं; यह सुनकर आपके योद्धा उन पर उसी प्रकार बाणों की वर्षा करने लगे, जैसे मेघ पर्वत पर जल की धाराएं गिराते है, इतने पर भी वे दोपहर के तपते हुए सूर्य की भाँति उन्हें रोक न सके। राजन! उस समय वहाँ सोमदत्त-पुत्र भूरिश्रवा को छोड़कर दूसरा कोई योद्धा नहीं था, जो विषादग्रस्त न हुआ हो। भारत! सोमदत्तकुमार महामना भूरिश्रवा ने अपने रथियों को विवश होकर भागते देख धनुष ले युद्ध करने की इच्छा से सात्यकि पर चढ़ाई की। इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में सात्यकि भूरिश्रवा-समागमविषयक तिरसठवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वहाँ से सैनिक भागकर स्थाल खाली कर देते थे।
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