एकोनषष्टितम (59) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितमअध्याय: श्लोक 99-111 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन की यह प्रतिज्ञा और कर्तव्य-पालन का यह निश्चय सुनकर भगवान श्रीकृष्ण का मन प्रसन्न हो गया। वे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन का प्रिय करने के लिये उद्यत हो पुनः चक्र लिये रथ पर जा बैठे। शत्रुओं का संहार करने वाले भगवान श्रीकृष्ण पुनः घोड़ों की बागडोर सँभाली और पांचजन्य शंख लेकर उनकी ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित कर दिया। उस समय उनके कण्ठ का हार, भुजाओं के बाजूबन्द और कानों के कुण्डल हिलने लगे थे। उनके कमल के समान सुन्दर नेत्रों पर सेना से उठी हुई धूल बिखरी थी। उनकी दन्तावली शुद्ध एवं स्वच्छ थी और उन्होंने अपने हाथ में शंख ले रखा था। उस अवस्था में श्रीकृष्ण को देखकर कौरव पक्ष के प्रमुख वीर कोलाहल कर उठे। तत्पश्चात कौरवों के सम्पूर्ण सैन्यदलों में मृदंग, भेरी, पणव तथा दुन्दुभि की ध्वनि होने लगी। रथ के पहियों की घरघराहट सुनायी देने लगी। वे सभी शब्द वीरों के सिंहनाद से मिलकर अत्यन्त उग्र प्रतीत हो रहे थे। अर्जुन के गाण्डीव धनुष का गम्भीर घोष मेघ की गर्जना के समान आकाश तथा सम्पूर्ण दिशाओं में फैल गया तथा उनके धनुष से छूटे हुए निर्मल एवं स्वच्छ बाण सम्पूर्ण दिशाओं में बरसने लगे। संजय कहते हैं- महाराज! उस समय कौरवराज दुर्योधन हाथ में धनुष-बाण लिये बड़े वेग से अर्जुन के सामने आया, मानो घास-फूँस जलाने के लिये प्रज्वलित आग बढ़ती चली जा रही हो। भीष्म और भूरिश्रवा ने भी दुर्योधन का साथ दिया। तदनन्तर भूरिश्रवा ने सोने के पंख से युक्त सात भल्ल अर्जुन पर चलाये। दुर्योधन ने भयंकर वेगशाली तोमर का प्रहार किया। शल्य ने गदा और शान्तनुनन्दन भीष्म ने शक्ति चलायी। अर्जुन ने सात बाणों से भूरिश्रवा के छोड़े हुए सातों भल्लों को काटकर तीखे छुरे से दुर्योधन की भुजाओं से मुक्त हुए उस तोमर को भी नष्ट कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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