द्विनवतितम (92) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: द्विनवतितम अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद
राजन्। अर्जुन कृत वर्मा को उस युद्ध स्थल में सौ बाणों-द्वारा बींध डाला। फिर उसे मोहित-सा करते हुए उन्होंने तीन बाण और मारे। राजन! अर्जुन कृतवर्मा को उस युद्ध स्थल में सौ बाणों-द्वारा बींध डाला। फिर उसे मोहित-सा करते हुए उन्होंने तीन बाण और मारे। तब कृतवर्मा ने भी हंसकर कुन्तीकुमार अर्जुन और मघु-वंशी भगवान वासुदेव में से प्रत्येक को पच्चीस-पच्चीस बाण मारे। यह देख अर्जुन ने उसके धनुष को काटकर क्रोध में भरे हुए विषधर को सर्प के समान भंयकर और आग की लपटों के समान तेजस्वी इक्कीस बाणों द्वारा उसे भी घायल कर दिया। भारत! तब महारथी कृतवर्मा ने दूसरा धनुष लेकर तुरंत ही पांच बाणों से अर्जुन की छाती में चोट पहुँचायी। फिर पांच तीखे बाण और मारकर अर्जुन को घायल कर दिया। यह देख अर्जुन ने कृतवर्मा की छाती में नौ बाण मारे। कुन्तीकुमार अर्जुन को कृतवर्मा के रथ से उलझे हुए देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने मन-ही-मन सोचा कि हम लोगों का अधिक समय यहीं न व्यतीत हो जाय। तत्पश्रात श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-‘तुम कृतवर्मा पर दया न करो। इस समय सम्बन्धी होने का विचार छोड़कर इसे मथकर मार डालो’। तब अर्जुन अपने बाणों द्वारा कृतवर्मा को मूर्च्छित करके अपने वेगशाली घोड़ों द्वारा काम्बोजों की सेना पर आक्रमण करने लगे। श्वेतवहान अर्जुन के व्यूह में प्रवेश कर जाने पर कृतवर्मा को बड़ा क्रोध हुआ। वह बाण सहित धनुष को हिलाता हुआ पाञ्चाल राजकुमार युधामन्यु और उत्तमौजा से भिड़ गया। वे दोनों पाञ्चाल वीर अर्जुन के चक्र रक्षक होकर उनके पीछे-पीछे जा रहे थे। कृतवर्मा ने अपने रथ और बाणों द्वारा वहाँ आते हुए उन दोनों वीरों को रोक दिया। भोजवंशी कृतवर्मा ने अपने तीन तीखे बाणों द्वारा युधामन्यु को और चार बाणों से उत्तमौजा को घायल कर दिया। तब उन दोनों ने भी कृतवर्मा को दस-दस बाणों से बींध दिया। फिर युधामन्यु ने तीन और उत्तमौजा ने भी तीन बाणों द्वारा उसे चोट पहंचायी। साथ ही उन्होंने कृतवर्मा के ध्वज और धनुष को भी काट डाला। यह देख कृतवर्मा क्रोध से मूर्च्छित हो उठा और उसने दूसरा धनुष हाथ में लेकर उन दोनों वीरों के धनुष काट दिये। तत्पश्रात वह उन पर बाणों की वर्षा करने लगा। इसी तरह वे दोनों पाञ्चाल वीर भी दूसरे धनुषों पर डोरी चढ़ाकर भोजवंशी कृतवर्मा को चोट पहुचाने लगे। इसी बीच में अवसर पाकर अर्जुन शत्रुओं की सेना में घुस गये। परंतु कृतवर्मा द्वारा रोक दिये जाने के कारण वे दोनों नर श्रेष्ठ युधामन्यु और उत्तमौजा प्रयत्न करने पर भी आपके पुत्रों की सेना में प्रवेश करने का द्वार न पा सके। श्वेत घोड़ों वाले शत्रुसूदन अर्जुन उस युद्ध स्थल में बड़ी उतावली के साथ शत्रु-सेनाओं को पीड़ा दे रहे थे। परंतु उन्होंने (सम्बन्धका ) विचार करके ) कृत वर्मा को सामने पाकर भी मारा नहीं। अर्जुन को इस प्रकार आगे बढ़ते देख शूरवीर राजा श्रुतायुध अत्यन्त कुपित हो उठे और अपना विशाल धनुष हिलाते हुए उन पर टूट पड़े। उन्होंने अर्जुन को तीन और श्री कृष्ण को सत्तर बाण मारे। फिर अत्यन्त तीखे क्षुरप्र से अर्जुन की ध्व्जा पर प्रहार किया। तब अर्जुन ने अत्यन्त कुपित होकर अंकुशों से महान गजराज को पीड़ित करने की भाँति झुकी हुई गांठवाले नब्बे बाणों से राजा श्रुतायुध को चोट पहुँचायी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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