महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 88 श्लोक 30-34

अष्टाशीतितम (88) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 30-34 का हिन्दी अनुवाद

सुहृदय अश्वत्थामा ने जब इस प्रकार हित की बात कहीं, तब दुर्योधन ने उस पर विचार करके लंबी साँस खींचकर मन ही मन दुखी हो इस प्रकार बोले-सखे! तुम जैसा कहते हो, वह सब ठीक है; परंतु इस विषय में कुछ मैं भी निवेदन कर रहा हूँ, अतः मेरी बात भी सुन लो। इस दुर्बुद्धि भीमसेन ने सिंह के समान हठपूर्वक दुःशासन का वध करके जो बात कहीं थी, वह तुमसे छिपी नहीं है। वह इस समय भी मेरे हृदय में स्थित होकर पीड़ा दे रही है। ऐसी दशा में कैसे संधि हो सकती है? इसके सिवा भयंकर वायु जैसे महापर्वत मेरु का सामना नहीं कर सकती, उसी प्रकार अर्जुन इस रणभूमि मेंं कर्ण का वेग नहीं सह सकते। हमने हठपूर्वक बारंबार जो वैर किया है, उसे सोचकर कुन्ती के पुत्र मुझ पर विश्वास भी नहीं करेंगे। अपनी मर्यादा न छोड़ने वाले गुरुपुत्र! तुम्हें कर्ण से युद्ध बंद करने के लिये नहीं कहना चाहिये; क्योंकि इस समय अर्जुन महान परिश्रम से थक गये हैं; अतः अब कर्ण उन्हें बलपूर्वक मार डालेगा। अश्वत्थामा से ऐसा कहकर बारंबार अनुनय-विनय के द्वारा उसे प्रसन्न करके आपके पुत्र ने अपने सैनिकों को आदेश देते हुए कहा- अरे! तुम लोग हाथों में बाण लिये चुपचाप बैठे क्यों हो? मेंरे शत्रुओं पर टूट पड़ो और उन्हें मार डालो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में अश्वत्थामा का वचनविषयक अठासीवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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