एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद
श्रीकृष्ण बोले- पाण्डुनन्दन! मैं तुम्हें यह धर्म का रहस्य बता रहा हूँ। धनंजय! पितामह भीष्म, पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर, विदुर जी तत्व का उपदेश कर सकते हैं, उसी को मैं ठीक-ठीक बता रहा हूँ। इसे ध्यान देकर सुनो। सत्य बोलना उत्तम है। सत्य से बढ़कर दूसरा कुछ नहीं है; परंतु यह समझ लो कि सत्पुरुषों द्वारा आचरण में लाये हुए सत्य के यथार्थ स्वरुप का ज्ञान अत्यन्त कठिन होता है। जहाँ मिथ्या बोलने का परिणाम सत्य बोलने के समान मंगलकारक हो अथवा जहाँ सत्य बोलने का परिणाम असत्य भाषण के समान अनिष्टकारी हो, वहाँ सत्य नहीं बोलना चाहिये। वहाँ असत्य बोलना ही उचित होगा। विवाह काल में, स्त्रीप्रसंग के समय, प्राणों पर संकट आने पर, सर्वस्व का अपहरण होते समय तथा ब्राह्मण की भलाई के लिये आवश्यकता हो तो असत्य बोल दे; इन पांच अवसरों पर झूठ बोलने से पाप नहीं होता। जब किसी का सर्वस्व छीना जा रहा हो तो उसे बचाने के लिये झूठ बोलना कर्त्तव्य है। वहाँ असत्य ही सत्य और सत्य ही असत्य हो जाता है। जो मूर्ख है, वही यथाकथंचित व्यवहार में लाये हुए एक जैसे सत्य को सर्वत्र आवश्यक समझता है। केवल अनुष्ठान में लाया गया असत्यरुप सत्य बोलने योग्य नहीं होता, अत: वैसा सत्य न बोले। पहले सत्य और असत्य का अच्छी तरह निर्णय करके जो परिणाम में सत्य हो उसका पालन करे। जो ऐसा करता है, वही धर्म का ज्ञाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज