महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 1 श्लोक 19-24

प्रथम (1) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 19-24 का हिन्दी अनुवाद


द्विजश्रेष्ठ! फिर दुर्योधन के हितैषी कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर अत्‍यन्‍त दुखी हो उन्‍होंने अपने प्राण कैसे धारण किये? कुरुवंशी राजा ने जिसके ऊपर अपने पुत्रों की विजय की आशा बाँध रखी थी, उसके मारे जाने पर उन्‍होंने कैसे धारण किये? मैं समझता हूँ कि बड़े भारी संकट में पड़ जाने पर भी मनुष्‍यों के लिये अपने प्राणों का परित्‍याग करना अत्‍यन्‍त कठिन है, तभी तो कर्णवध का वृतान्‍त सुनकर भी राजा धृतराष्‍ट्र ने इस जीवन का त्‍याग नहीं किया।
ब्राह्मन्! उन्‍होंने वृद्ध शान्‍तनुनन्‍दन भीष्म, बाह्लीक, द्रोण, सोमदत्त तथा भूरिश्रवा को और अन्‍यान्‍य सुहृदयों, पुत्रों एवं पौत्रों को भी शत्रुओं द्वारा मारा गया सुनकर भी जो अपने प्राण नहीं छोड़े, उससे मुझे यही मालूम होता है कि मनुष्‍य के लिये स्‍वेच्‍छापूर्वक मरना बहुत कठिन है। महामुने! यह सारा वृतान्‍त आप मुझसे विस्‍तारपूर्वक कहें। मैं अपने पूर्वजों का महान चरित्र सुनकर तृप्‍त नहीं हो रहा हूँ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में जन मेजय वाक्‍य नामक पहला अध्‍याय पूरा हुआ।

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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