महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 84 श्लोक 22-29

चतुरशीति (84) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतुरशीति अध्याय: श्लोक 22-29 का हिन्दी अनुवाद
  • दारुक ने भी घोड़ों को खोलकर शास्त्रविधि अनुसार उनकी परिचर्या की और उनका सारा साज-बाज उतार दिया तथा उन्हें बंधनमुक्त करके छोड़ दिया (22)
  • संध्या-वंदन आदि सारा कार्य समाप्त करके मधुसूदन श्रीकृष्ण ने कहा- 'युधिष्ठिर का कार्य सिद्ध करने के लिए आज रात में हम लोग यहीं रहेंगे।' (23)
  • उनका यह विचार जानकार सेवकों ने वहीं डेरे डाल दिये। क्षण भर में उन्होंने खाने-पीने के उत्तमोत्तम पदार्थ प्रस्तुत कर दिये। (24)
  • राजन! उस गाँव में जो प्रमुख ब्राह्मण रहते थे, वे श्रेष्ठ, कुलीन, लज्जाशील और ब्राह्मणोचित्त वृत्ति का पालन करने वाले थे। (25)
  • उन्होंने शत्रुदमन महात्मा हृषीकेश के पास जाकर आशीर्वाद तथा मंगलपाठपूर्वक उनका यथोचित पूजन किया। (26)
  • सर्वलोकपूजित दशार्हनंदन श्रीकृष्ण की पूजा करके उन्होंने उन महात्मा को अपने रत्नसम्पन्न गृह समर्पित कर दिये अर्थात अपने-अपने घरों में ठहरने के लिए प्रभु से प्रार्थना की। (27)
  • तब भगवान ने यह कहकर कि यहाँ ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है, उनका यथायोग्य सत्कार किया और उनके संतोष के लिए उन सबके घरों पर जाकर पुन: उनके साथ ही लौट आए। (28)
  • तत्पश्चात केशव ने वहीं उन ब्राह्मणों को सुस्वादु अन्न भोजन कराया, फिर स्वयं भी भोजन करके उन सबके साथ उस रात में वहाँ सुखपूर्वक निवास किया। (29)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर को प्रस्थान विषयक चौरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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