महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 138 श्लोक 18-27

अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद
  • भूपाल! तुम अभिमान छोड़कर अपने उन बिछुड़े हुए भाइयों से मिल जाओ और यह अपूर्व मिलन देखकर श्रीकृष्ण आदि सब नरेश अपने नेत्रों से आनंद के आँसू बहावें। (18)
  • तदनंतर तुम अपने भाइयों के साथ इस सारी पृथ्वी का शासन करो और ये राजा लोग एक दूसरे से मिल-जुलकर हर्षपूर्वक यहाँ से पधारें। (19)
  • राजेन्द्र! इस युद्ध से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा। तुम्हारे हितैषी सुहृद जो तुम्हें युद्ध से रोकते हैं, उनकी वह बात सुनो और मानो, क्योंकि युद्ध छिड़ जाने पर क्षत्रियों का निश्चय ही विनाश दिखाई दे रहा है। (20)
  • वीर! ग्रह और नक्षत्र प्रतिकूल हो रहे हैं। पशु और पक्षी भयंकर शब्द कर रहे हैं तथा नाना प्रकार के ऐसे उत्पात[1]दिखाई देते हैं, जो क्षत्रियों के विनाश की सूचना देते हैं। (21)
  • विशेषत: यहाँ हमारे घर में बुरे निमित्त दृष्टिगोचर होते हैं। जलती हुई उल्काएँ गिरकर तुम्हारी सेना को पीड़ित कर रही हैं। (22)
  • प्रजानाथ! हमारे सारे वाहन अप्रसन्न एवं रोते-से दिखाई देते हैं। गीध तुम्हारी सेनाओं को चारों ओर से घेरकर बैठते हैं। (23)
  • इस नगर तथा राजभवन की शोभा अब पहले जैसी नहीं रही। सारी दिशाएँ जलती-सी प्रतीत होती हैं और उनमें अमंगलसूचक शब्द करती हुई गीदड़ियाँ फिर रही हैं। (24)
  • महाबाहो! तुम पिता, माता तथा हम हितैषियों का कहना मानो। अब शांतिस्थापन और युद्ध दोनों तुम्हारे ही अधीन हैं। (25)
  • शत्रुसूदन! यदि तुम सुहृदों की बातें नहीं मानोगे तो अपनी सेना को अर्जुन के बाणों से अत्यंत पीड़ित होती देख कर पछताओगे। (26)
  • यदि हमारी ये बातें तुम्हें विपरीत जान पड़ती हैं तो जिस समय युद्ध में गर्जना करने वाले महाबली भीमसेन का विकट सिंहनाद और अर्जुन के गांडीव धनुष की टंकार सुनोगे, उस समय तुम्हें ये बातें याद आएंगी। (27)


इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में भीष्म–द्रोण वाक्य विषयक एक सौ अड़त्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अपशकुन

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