महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 115 श्लोक 17-21

पंचदशाधिकशततम (115) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-21 का हिन्दी अनुवाद


  • पक्षीराज गरुड़ के चले जाने पर गालव उस कन्या के साथ यह सोचते हुए चल दिये कि राजाओं में से कौन ऐसा नरेश है, जो इस कन्या का शुल्क देने में समर्थ हो। (17)
  • वे मन-ही-मन विचार करके अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशी नृपतिशिरोमणि महापराक्रमी हर्यश्व के पास गए, जो चतुरंगिणी सेना से सम्पन्न थे। (18)
  • वे कोष, धन-धान्य और सैनिक बल- सबसे सम्पन्न थे। पुरवासी प्रजा उन्हें बहुत ही प्रिय थी। ब्राह्मणों के प्रति उनका अधिक प्रेम था। वे प्रजावर्ग के हित की इच्छा रखते थे। उनका मन भोगों से विरक्त एवं शांत था। वे उत्तम तपस्या में लगे हुए थे। (19)
  • राजा हर्यश्व के पास जाकर विप्रवर गालव ने कहा- 'राजेन्द्र! मेरी यह कन्या अपनी संतानों द्वारा वंश की वृद्धि करने वाली है। तुम शुल्क देकर इसे अपनी पत्नी बनाने के लिए ग्रहण करो। हर्यश्व! मैं तुम्हें पहले इसका शुल्क बताऊंगा। उसे सुनकर तुम अपने कर्तव्य का निश्चय करो।' (20-21)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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