द्वाविंश (22) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 17-29 का हिन्दी अनुवाद
जैसे शिष्य श्रुति के अर्थ को जानने के लिये उपदेश करने वाले गुरु के पास जाता है और उनसे श्रुति के अर्थ का ज्ञान प्राप्त करके फिर स्वयं उसका विचार और अनुसरण करता है, वैसे ही आप सोते और जागते समय हमारे ही दिखाये हुए भूत और भविष्य विषयों का उपभोग करते हैं। जो मनरहित मन्दबुद्धि प्राणी हैं, उनमें भी हमारे लिये ही कार्य किये जाने पर प्राण धारण देखा जाता है। बहुत से संकल्पों का मनन और स्वप्नों का आश्रय लेकर भोग भोगने की इच्छा से पीड़ित हुआ प्राणी विषयों की ओर ही दौड़ता है। विषय वासना से अनुविद्ध संकल्पजनित भोगों का उपभोग करके प्राणशक्ति के क्षीण होने पर मनुष्य बिना दरवाजे के घर में घुसे हुए मनुष्य की भाँति उसी तरह शान्त हो जाता है, जैसे समिधाओं के जल जाने पर प्रज्वलित अग्नि स्वयं ही बुझ जाती है। भले ही हम लोगों की अपने-अपने गुणों के प्रति आसक्ति हो और भले ही हम परस्पर एक दूसरे के गुणों को न जान सकें, किंतु यह बात सत्य है कि आप हमारी सहायता के बिना किसी भी विषय का अनुभव नहीं कर सकते। आपके बिना तो हमें केवल हर्ष से ही वंचित होना पड़ता है।'
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिपर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में ब्राह्मणगीता विषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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