महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 29 श्लोक 41-53

एकोनत्रिंश (29) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (पुत्रदर्शन पर्व)

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महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 41-53 का हिन्दी अनुवाद


यह द्रुपदकुमारी कृष्णा मुझे अपनी समस्त पुत्रवधुओं में सबसे अधिक प्रिय है। इस बेचारी के भाई-बन्धु और पुत्र सभी मारे गये हैं; जिससे यह अत्यन्त शोकमग्न रहा करती है। सदा मंगलमय वचन बोलने वाली श्रीकृष्ण की बहन भाविनी सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के वध से संतप्त हो निरन्तर शोक में ही डूबी रहती है। ये भूरिश्रवा की परम प्यारी पत्नी बैठी है, जो पति की मृत्यु के शोक से व्याकुल हो अत्यन्त दुःख में मग्न रहती है। इसके बुद्धिमान श्वशुर कुरुश्रेष्ठ बाह्लिक भी मारे गये हैं। भूरिश्रवा के पिता सोमदत्त भी अपने पिता के साथ ही उस महासमर में वीरगति को प्राप्त हुए थे। आपके पुत्र, संग्राम में कभी पीठ न दिखाने वाले, परम बुद्धिमान जो ये श्रीमान महाराज हैं, इनके जो सौ पुत्र समरांगण में मारे गये थे, उनकी ये सौ स्त्रियाँ बैठी हैं। ये मेरी बहुएँ दुःख और शोक के आघात सहन करती हुईं मेरे और महाराज के भी शोक को बारंबार बढ़ा रही हैं। महामुने! ये सब-की-सब शोक के महान आवेग से रोती हुई मुझे ही घेरकर बैठी रहती हैं। प्रभो! जो मेरे महामनस्वी श्वशुर शूरवीर महारथी सोमदत्त आदि मारे गये हैं, उन्हें कौन-सी गति प्राप्त हुई है? भगवान! आपके प्रसाद से ये महाराज, मैं और आपकी बहू कुन्ती, ये सब-के-सब जैसे भी शोकरहित हो जायें, ऐसी कृपा कीजिये।"

जब गांधारी ने इस प्रकार कहा, तब व्रत से दुर्बल मुख वाली कुन्ती ने गुप्त रूप से उत्पन्न हुए अपने सूर्यतुल्य तेजस्वी पुत्र कर्ण का स्मरण किया। दूर तक की देखने-सुनने और समझने वाले वरदायक ऋषि व्यास ने अर्जुन की माता कुन्ती देवी को दुःख में डूबी हुई देखा। तब भगवान व्यास ने उनसे कहा- "महाभागे! तुम्हें किसी कार्य के लिये यदि कुछ कहने की इच्छा हो, तुम्हारे मन में यदि कोई बात उठी हो तो उसे कहो।"

तब कुन्ती ने मस्तक झुकाकर श्वशुर को प्रणाम किया और लज्जित हो प्राचीन गुप्त रहस्य को प्रकट करते हुए कहा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत पुत्रदर्शन पर्व में धृतराष्ट्र आदि की हुई प्रार्थना विषयक उन्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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