महाभारत आदि पर्व सम्पूर्ण

महाभारत आदि पर्व सम्पूर्ण

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आदिपर्व सम्पूर्ण
महाभारत के पठन एवं श्रवण की महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण द्वैपायन के मुखारविन्द से निकला हुआ यह महाभारत अत्यन्त पुण्यजनक, पवित्र, पापहारी एवं कल्याण रूप है; इसकी महिमा अपार है। जो इस महाभारत की कथा को सुनकर उसे हृदयंम कर लेता है, उसे तीर्थराज पुष्कर के जल में गोता लगाने की क्या आवश्यकता है ? पुष्कर स्नान का जो फल शास्त्रों में कहा गया है, वह उसे इस कथा के श्रवण से ही मिल जाता है। एक ओर तो एक मनुष्य वेदज्ञ एवं अनेक शास्त्रों के जानने वाले ब्राह्मण को सोने से मढे़ हुए सींगोंवाली सौ गौएँ दान करता है और दूसरी ओर दूसरा मनुष्य नित्य महाभारत की पुण्यमयी कथा का श्रवण करता है, उन दोनों को समान फल मिलता है। (महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व से)

निवेदन

महाभारत का आदिपर्व समाप्त हो चुका है। अब यहाँ से सभा पर्व का आरम्भ हो रहा है। आदिपर्व के उत्तर भारतीय (प्रधानतया नीलकण्ठी) पाठ के अनुसार 8540 श्लोक आदिपर्व में थे। दाक्षिणात्य पाठ के उपयोगी समझकर 736 1/2 श्लोक और ले लिये गये। इससे आदिपर्व 9276 1/2 श्लोकों का हो गया। इसी प्रकार सभापर्व में भी दाक्षिणात्य पाठ के उपयोगी श्लोक लिये जायँगे। यों श्लोकसंख्या में वृद्धि होती रहेगी। अनुवाद में मूल का अनुसरण करने का यथासाध्य पूरा प्रयत्न अनुवादक तथा संशोधक महोदय कर रहे हैं, तथापि भूलें तो रहती ही होंगी। विद्वान पाठक ध्यान से पढ़कर भूले बतायेंगे, तो उनकी बड़ी कृपा होगी। उन भूलों पर विचार करके आगामी संस्करण में उनके सुधार का प्रयत्न किया जायगा। महाभारत के ग्राहक उत्तरोत्तर बढ़ रहे हैं, यह आनन्द का विषय है। महाभारत के अनुरागी महानुभावों को इस ग्रन्थ के ग्राहक बढ़ाकर भारतीय ज्ञान विज्ञान तथा संस्कृति के मूर्तस्वरूप पंचम वेदरूप् इस महान् पुण्य ग्रन्थ का प्रचार प्रसार करने में विशेष रूप से सहायक बनना चाहिये। यह हमारी विनीत प्रार्थना है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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