पंचनवतितम (95) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचनवतितम अध्याय: श्लोक 61-75 का हिन्दी अनुवाद
इसके बाद तपस्वी मुनियों ने कुन्तीसहित पाण्डवों को वन से हस्तिनापुर में लाकर भीष्म तथा विदुर जी को सौंप दिया। साथ ही समस्त प्रजावर्ग के लोगों को भी सारे समाचार बताकर वे तपस्वी उन सब के देखते-देखते वहाँ से अन्तर्धान हो गये। उन ऐश्वर्यशाली मुनियों की बात सुनकर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और देवताओं की दुन्दुभियां बज उठीं। भीष्म और धृतराष्ट्र के द्वारा अपना लिये जाने पर पाण्डवों ने उनसे अपने पिता की मृत्यु का समाचार बताया, तत्पश्चात् पिता की और्ध्वदैहिक क्रिया को विधिपूर्वक सम्पन्न करके पाण्डव वहीं रहने लगे। दुर्योधन को बाल्यावस्था से ही पाण्डवों का साथ रहना सहन नहीं हुआ। पापाचारी दुर्योधन राक्षसी बुद्धि का आश्रय ले अनेक उपायों से पाण्डवों की जड़ उखाड़ने का प्रयत्न करता रहता था। परंतु जो होने वाली बात है, वह होकर ही रहती है; इसलिये दुर्योधन आदि पाण्डवों को नष्ट करने में सफल न हो सके। इसके बाद धृतराष्ट्र ने किसी बहाने से पाण्डवों को जब वारणावत नगर में जाने के लिये प्रेरित किया, तब उन्होंने वहाँ से जाना स्वीकार कर लिया। वहाँ भी उन्हें लाक्षागृह में जला डालने का प्रयत्न किया गया; किंतु पाण्डवों के विदुर जी की सलाह के अनुसार काम करने के कारण विरोधी लोग उनको दग्ध करने में समर्थ न हो सके। पाण्डव वारणावत से अपने को छिपाते हुए चल पड़े और मार्ग में हिडिम्ब राक्षस का वध करके वे एकचक्रा नगरी में पहुँचे। एकचक्रा में भी बक नाम वाले राक्षस का संहार करके वे पाञ्चाल नगर में चले गये। वहाँ पाण्डवों ने द्रौपदी को पत्नीरुप में प्राप्त किया और फिर अपनी राजधानी हस्तिनापुर में लौट आये। वहाँ कुशलतापूर्वक रहते हुए उन्होंने द्रौपदी से पांच पुत्र उत्पन्न किये। युधिष्ठिर ने प्रतिविन्ध्य को, भीमसेन ने सुतसोम को, अर्जुन ने श्रुतकीर्ति को, नकुल ने शतानीक को और सहदेव ने श्रुतकर्मा को जन्म दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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