षट्षष्टितम (66) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 43-63 का हिन्दी अनुवाद
उसके पुत्र को तो बल और देवनन्दिनी पुत्री को सुरा समझो। तदनन्तर एक समय ऐसा आया जब प्रजा भूख से पीड़ित हो भोजन की इच्छा से एक-दूसरे को मारकर खाने लगी, उस समय वहाँ अधर्म प्रकट हुआ, जो समस्त प्राणियों का नाश करने वाला है। अधर्म की स्त्री निर्ऋृति हुई, जिसने नैर्ऋृत नाम वाले तीन भयंकर राक्षस पुत्र उत्पन्न हुए जो सदा पापकर्म में ही लगे रहने वाले हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- भय, महाभय और मृत्यु। उनमें मृत्यु समस्त प्राणियों का अन्त करने वाला है। उसके पत्नी या पुत्र कोई नहीं है; क्योंकि वह सबका अन्त करने वाला है। देवी ताम्रा ने काकी, श्येनी, भाषी, धृतराष्ट्री तथा शुकी इन पांच लोक विख्यात कन्याओं को उत्पन्न किया। जनेश्वर! काकी ने उल्लुओं और श्येनी बाजों को जन्म दिया; भाषी को मुर्गों तथा गीधों का उत्पन्न किया। कल्याणमयी धृतराष्ट्री ने सब प्रकार के हंसों, कलहंसों तथा चक्रवाकों को जन्म दिया। कल्याणमय गुणों से सम्पन्न तथा समस्त शुभलक्षणों से युक्त यशस्विनी शुकी ने शकों (तोतों) को ही उत्पन्न किया। क्रोधवशा ने नौ प्रकार के क्रोधजनित कन्याओं को जन्म दिया। उनके नाम ये है- मृगी, मृगमन्दा, हरि, भद्रमना, मातंगी, सार्दुली, स्वेता, सुरभि तथा सम्पूर्ण लक्षणों से सम्पन्न सुन्दरी सुरसा। नरश्रेष्ठ! समस्त मृग मृगी की संताने हैं। परमतप! मृगमन्दा से रीछ तथा सृमर (छोटी जाति के मृग) उत्पन्न हुए। भद्रमना ने ऐरावत हाथी को अपने पुत्र रूप में उत्पन्न किया। देवताओं का हाथी महान गजराज ऐरावत भद्रमना का ही पुत्र है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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