त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 22-36 का हिन्दी अनुवाद
ऐसा कहकर मन्त्रियों सहित राजा ने उन फलों को लेने की इच्छा की। विधाता के विधान एवं महर्षि के वचन से प्रेरित होकर राजा ने वही फल स्वयं खाया, जिस पर तक्षक नाग बैठा था। शौनक जी! खाते समय राजा के हाथ में जो फल था, उससे एक छोटा-सा कीट प्रकट हुआ। देखने में वह अत्यन्त लघु था, उसकी आँखें काली और शरीर का रंग ताँबे के समान था। नृपश्रेष्ठ परीक्षित ने उस कीडे़ को हाथ में लेकर मन्त्रियों से इस प्रकार कहा- ‘अब सूर्यदेव अस्ताचल को जा रहे हैं; इसलिये इस समय मुझे सर्प के विष से कोई भय नहीं है। वे मुनि सत्यवादी हों, इसके लिये यह कीट ही तक्षक नाम धारण करके मुझे डँस ले। ऐसा करने से मेरे दोष का परिहार हो जायेगा। काल से प्रेरित होकर मन्त्रियों ने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दी। मन्त्रियों से पूर्वोक्त बात कहकर राजाधिराज परीक्षित उस लघु कीट को कंधे पर रखकर जोर-जोर से हँसने लगे। वे तत्काल ही मरने वाले थे; अतः उनकी बुद्धि मारी गयी थी। राजा अभी हँस ही रहे थे कि उन्हें जो निवेदित किया गया था उस फल से निकलकर तक्षक नाग ने अपने शरीर से उनको जकड़ लिया। इस प्रकार वेगपूर्वक उनके शरीर में लिपटकर नागराज तक्षक ने बड़े जोर से गर्जना की और भूपाल परीक्षित को डँस लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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