तृतीय (3) अध्याय: आदि पर्व (पौष्य पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 137-153 का हिन्दी अनुवाद
यह जो अविनाशी कालचक्र निरन्तर चल रहा है, इसके भीतर तीन सौ साठ अरे हैं, चौबीस पर्व हैं और इस चक्र को छः कुमार घुमा रहे हैं। यह सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप है, ऐसी दो युवतियाँ सदा काले और सफेद तन्तुओं को इधर-उधर चलाती हुई इस वासना जलरूपी वस्त्र को बुन रही हैं तथा वे ही सम्पूर्ण भूतों और समस्त भुवनों का निरन्तर संचालन करती हैं। जो महात्मा वज्र धारण करके तीनों लोकों की रक्षा करते हैं, जिन्होंने वृत्रासुर का वध तथा नमुचि दानव का संहार किया है, जो काले रंग के दो वस्त्र पहनते और लोक में सत्य एवं असत्य का विवेक करते हैं, जल से प्रकट हुए प्राचीन वैश्वानररूप अश्व को वाहन बनाकर उस पर चढ़ते हैं तथा जो तीनों लोकों के शासक हैं, उन जगदीश्वर पुरन्दर को मेरा नमस्कार है। तब वह पुरुष उत्तंक से बोला- ‘ब्रह्मन! मैं तुम्हारे इस स्तोत्र से बहुत प्रसन्न हूँ। कहो, तुम्हारा कौन सा प्रिय कार्य करूँ?’ यह सुनकर उत्तंक ने कहा- ‘सब नाग मेरे अधीन हो जायें।' उनके ऐसा कहने पर वह पुरुष पुनः उत्तंक से बोला- ‘इस घोड़े की गुदा में फूँक मारो।' यह सुनकर उत्तंक ने घोड़े की गुदा में फूँक मारी। फूँकने से घोड़े के शरीर के समस्त छिद्रों से धुएँ सहित आग की लपटें निकलने लगीं। उस समय सारा नागलोक धुएँ से भर गया। फिर तो तक्षक घबरा गया और आग की ज्वाला के भय से दुखी हो दोनों कुण्डल लिये सहसा घर से निकल आया और उत्तंक से बोला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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