महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 21-41

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 21-41 का हिन्दी अनुवाद


तीन गुल्म का एक ‘गण’ होता है, तीन गण की एक ‘वाहिनी’ होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने ‘पृतना’ कहा है। तीन पृतना की एक ‘चमू’ तीन चमू की एक ‘अनीकिनी’ और दस अनीकिनी की एक ‘अक्षौहिणी’ होती है। यह विद्वानों का कथन हैं। श्रेष्ठ ब्राह्मणों! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही रहनी चाहिये। निष्पाप ब्राह्मणों! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये। एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हजार छः सौ दस (65610) कही गयी है। तपोधनों! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।

श्रेष्ठ ब्राह्मणों! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्डव दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी। अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपंचक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुईं और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं। अस्त्र-शस्त्रों के सर्वोपरि मर्मज्ञ भीष्म पितामह ने दस दिनों तक युद्ध किया, द्रोणाचार्य ने पाँच दिनों तक कौरव सेना की रक्षा की। शत्रु सेना को पीड़ित करने वाले वीरवर कर्ण ने दो दिन युद्ध किया और शल्य ने आधे दिन तक। इसके पश्चात (दुर्योधन और भीमसेन का परस्पर) गदायुद्ध आधे दिन तक होता रहा।

अठारहवाँ दिन बीत जाने पर रात्रि के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य ने निःशंक सोते हुए युधिष्ठिर के सैनिकों को मार डाला। शौनक जी! आपके इस सत्संग सत्र में मैं यह जो उत्तम इतिहास महाभारत सुना रहा हूँ, यही जनमेजय के सर्पयज्ञ में व्यास जी के बुद्धिमान शिष्य वैशम्पायन जी के द्वारा भी वर्णन किया गया था। उन्होंने बड़े-बड़े नरपतियों के यश और पराक्रम का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिये प्रारम्भ में पौष्य, पौलोम और आस्तीक- इन तीन पर्वों का स्मरण किया है। जैसे मोक्ष चाहने वाले पुरुष वैराग्य की शरण ग्रहण करते हैं, वैसे ही प्रज्ञावान मनुष्य अलौकिक अर्थ, विचित्र पद, अदभुत आख्यान और भाँति-भाँति की परस्पर विलक्षण मर्यादाओं से युक्त इस महाभारत का आश्रय ग्रहण करते हैं। जैसे जानने योग्य पदार्थों में आत्मा, प्रिय पदार्थों में अपना जीवन सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही सम्पूर्ण शास्त्रों पर ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप प्रयोजन को पूर्ण करने वाला यह इतिहास श्रेष्ठ है।

जैसे भोजन किये बिना शरीर-निर्वाह सम्भव नहीं है, वैसे ही इस इतिहास का आश्रय किये बिना पृथ्वी पर कोई कथा नहीं है। जैसे अपनी उन्नति चाहने वाले महात्वाकांक्षी सेवक अपने कुलीन और सद्भावसम्पन्न स्वामी की सेवा करते हैं, इसी प्रकार संसार के श्रेष्ठ कवि इस महाभारत की सेवा करके ही अपने काव्य की रचना करते हैं। जैसे लौकिक और वैदिक सब प्रकार के ज्ञान को प्रकाशित करने वाली सम्पूर्ण वाणी स्वरों एव व्यंजनों में समायी रहती है, वैसे ही (लोक, परलोक एवं परमार्थ सम्बन्धी) सम्पूर्ण उत्तम विद्या, बुद्धि इस श्रेष्ठ इतिहास में भरी हुई है। यह महाभारत इतिहास ज्ञान का भण्डार है। इसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थ और उनका अनुभवन कराने वाली युक्तियाँ भरी हुई हैं। इसका एक-एक पद और पर्व आश्चर्यजनक है तथा यह वेदों के धर्ममय अर्थ से अलंकृत है। अब इसके पर्वों की संग्रह-सूची सुनिये। पहले अध्याय में पर्वानुक्रमणी है और दूसरे में पर्व संग्रह।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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