षडधिकद्विशततम (206) अध्याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्यलम्भ पर्व )
महाभारत: आदि पर्व: षडधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 12-19 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार पाञ्चालराज द्रुपद ने बड़े हर्ष और उल्लास के साथ पाण्डवों को उपर्युक्त वस्तुएं अर्पित कीं। सौ पालकियां और उनको ढोने वाले पांच सौ कहार दिये। इस प्रकार पाञ्चालराज ने अपनी कन्या के लिये ये सभी वस्तुएं तथा बहुत-सा धन दहेज में दिया। जनमेजय! धृष्टधुम्न स्वयं अपनी बहिन का हाथ पकड़कर सवारी पर बैठाने के लिये ले गये। उस समय सहस्रों प्रकार के बाजे एक साथ बज उठे। राजा धृतराष्ट्र ने पाण्डव वीरों का आगमन सुनकर उनकी अगवानी के लिये कौरवों को भेजा। भारत! विकर्ण, महान् धनुर्धर चित्रसेन, विशाल धनुष वाले द्रोणाचार्य, गौतमवंशी कृपाचार्य आदि भेजे गये थे। इन सबसे से घिरे हुए शोभाशाली महाबली वीर पाण्डवों ने तब धीरे-धीरे हस्तिनापुर नगर में प्रवेश किया। पाण्डवों का आगमन सुनकर नागरिकों ने कौतूहलवश हस्तिनापुर नगर को (अच्छी तरह से) सजा रखा था। सड़कों पर सब ओर फूल बिखेरे गये थे, जल का छिड़काव किया गया था, सारा नगर दिव्य धूप की सुगन्ध से महँ-महँ कर रहा था और भाँति-भाँति की प्रसाधन-सामग्रियों से सजाया गया था। पताकाएं फहराती थीं और ऊंचे गृहों में पुष्पहार सुशोभित होते थे। शंख, भेरी तथा नाना प्रकार के वाद्यों की ध्वनि से वह अनुपम नगर बड़ी शोभा पा रहा था। उस समय कौतूहलवश सारा नगर देदीप्यमान सा हो उठा। पुरुषसिंह पाण्डव प्रजाजनों के शोक और दु:ख का निवारण करने वाले थे; अत: वहाँ उनका प्रिय करने की इच्छा वाले पुरवासियों द्वारा कही हुई भिन्न-भिन्न प्रकार की हृदय-स्पर्शिनी बातें सुनायी पड़ीं। (पुरवासी कह रहे थे-) ‘ये ही वे नरश्रेष्ठ धर्मज्ञ युधिष्ठिर पुन: यहाँ पधार रहे हैं, जो धर्मपूर्वक अपने पुत्रों की भाँति हम लोगों की रक्षा करते थे। इनके आने से नि:संदेह ऐसा जान पड़ता है, आज प्रजाजनों के प्रिय महाराज पाण्डु ही मानो हमारा प्रिय करने के लिये वन से चले आये हों। तात! कुन्ती के वीर पुत्र पुन: इस नगर में चले आये तो आज हम सब लोगों का कौन-सा परम प्रिय कार्य नहीं सम्पन्न हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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