द्वादश (12) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
भरतनन्दन! धर्मराज को हृदय से लगाकर उन्हे सान्तवना दे धृतराष्ट्र भीम को इस प्रकार खोजने लगे, मानो आग बनकर उन्हें जला डालना चाहते हों। उस समय उनके मन में दुर्भावना जाग उठी थी। शोकरूपी वायु से बढ़ी हुई उनकी क्रोधमयी अग्नि ऐसी दिखायी दे रही थी, मानो वह भीमसेनरूपी वन को जलाकर भस्म कर देना चाहती हो। भीमसेन के प्रति उनके सुगम अशुभ संकल्प को जानकर श्रीकृष्ण ने भीमसेन को झटका देकर हटा दिया और दोनों हाथों से उनकी लोहमयी मूर्ति धृतराष्ट्र के सामने कर दी। महाज्ञानी और परम बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण को पहले से ही उनका अभिप्राय ज्ञात हो गया था, इसलिये उन्होंने वहाँ यह व्यवस्था कर ली थी। बलवान राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बाँहों से दबाकर तोड़ डाला। राजा धृतराष्ट्र में दस हज़ार हाथियों का बल था तो भी भीम की लोहमयी प्रतिमा को तोड़कर उनकी छाती व्यथित हो गयी और मुँह से खून निकलने लगा। वे उसी अवस्था में खून से भीगकर पृथ्वी पर गिर पड़े, मानो ऊपर की डाली पर खिले हुए लाल फूलों से सुशोभित पारिजात का वृक्ष धराशायी हो गया हो। उस समय उनके विद्वान सारथि गवल्यणपुत्र संजय ने उन्हें पकड़कर उठाया और समझा-बुझाकर शान्त करते हुए कहा- ‘आपको ऐसा नहीं करना चाहिये’। जब रोष का आवेश दूर हो गया, तब वे महामना नरेश क्रोध छोड़कर शोक में डूब गये और ‘हा भीम! हा भीम! कहते हुए विलाप करने लगे। उन्हें भीमसेन के वध की आशंका से पीड़ित और क्रोध-शून्य हुआ जान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने इस प्रकार कहा- ‘महाराज धृतराष्ट्र! आप शोक न करें। ये भीम आपके हाथ से नहीं मारे गये हैं। प्रभो! यह तो लोहे की एक प्रतिमा थी, जिसे आपने चूर-चूर कर डाला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज