महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-19

षष्ठ (6) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

द्रुपद का पुरोहित को दौत्यकर्म के लिये अनुमति देना तथा पुरोहित का हस्तिनापुर को प्रस्थान राजा द्रुपद ने (पुरोहित से) कहा- पुरोहित जी! समस्त भूतों में प्राणधारी श्रेष्‍ठ हैं। प्राणधारियों में भी बुद्धि-जीवी श्रेष्ठ हैं। बुद्धिजीवी प्राणियों में भी मनुष्य और मनुष्यों में भी ब्राह्मण श्रेष्ठ माने गये हैं। ब्राह्मणों में विद्वान, विद्वानों में सिद्धान्त के जानकार, सिद्धान्त के ज्ञाताओं में भी तदनुसार आचरण करने वाले पुरुष तथा उनमें भी ब्रह्मवेता श्रेष्ठ हैं। मेरा ऐसा विश्वास है कि आप सिद्धान्त वेत्ताओं में प्रमुख हैं आपका कुल तो श्रेष्ठ है ही, अवस्था तथा शास्त्र-ज्ञान में भी आप बढ़े-चढ़े हैं। आपकी बुद्धि शुक्राचार्य और बृहस्पति के समान है। दुर्योधन का आचार-विचार जैसा है, वह सब भी आपको ज्ञात ही है। कुन्ती पुत्र पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर आचार-विचार भी आप लोगों से छिपा नहीं है। धृतराष्ट्र की जानकारी में शत्रुओं ने पाण्डवों को ठगा है।

विदुरजी के अनुनय-विनय करने पर भी धृतराष्ट्र अपने पुत्र का ही अनुसरण करते हैं। शकुनि ने स्वयं जूए के खेल में प्रवीण होकर यह जानते हुए भी कि युधिष्ठिर जूए के खिलाड़ी नहीं हैं, वे क्षत्रिय धर्म पर चलने वाले शुद्धात्मा पुरुष हैं, उन्हें समझ बूझकर जूए के लिए बुलाया। उन सबने मिलकर धर्मराज युधिष्ठिर को ठगा है। अब वे किसी भी अवस्था में स्वयं राज्य नहीं लौटायेंगे। परंतु आप राजा धृतराष्ट्र से धर्मयुक्त बातें कहकर उनके योद्धाओं का मन निश्चय ही अपनी ओर फेरे लेंगे। विदुर जी भी वहाँ आपके वचनों का समर्थन करेंगे तथा आप भीष्म, द्रोण एवं कृपाचार्य आदि में भेद उत्पन्‍नकर देंगे। जब मन्त्रीयों में फूट पड़ जायेगी और योद्धा भी विमुख होकर चल देंगे, तब उनका (प्रधान) कार्य होगा- पुनः नूतन सेना का संग्रह और संगठन। इसी बीच में एकाग्रचित्त वाले कुन्ती कुमार अनायास ही सेना का संगठन और द्रव्य का संग्रह कर लेंगे। जब वहाँ हमारे स्वजन उपस्थित रहेंगे और आप भी वहाँ रहकर लौटने में विलम्ब करेते रहेंगे तब निःसन्देह वे सेन्य संग्रह का कार्य उतने अच्छे ठंग से नहीं कर सकेंगे। वहाँ आपके जाने का यही प्रयोजन प्रधानरूप से दिखायी देता है। यह भी संभव है कि आपकी संगति से धृतराष्ट्र का मन बदल जाय और वे आपकी धर्मानुकुल बात स्वीकार कर लें। आप धर्मपरायण तो हैं, ही वहाँ धर्मानुकुल बर्ताव करते हुए कौरव कुल में जो कृपालु वृद्ध पुरुष है, उनके समक्ष पूर्व पुरुषों द्वारा आचरित कुल धर्म का प्रतिपादन एक़ पाण्डवों के क्लेशों का वर्णन कीजियेगा। इस प्रकार आप उनका मन दुर्योधन की ओर से फोड़ लेंगे, इसमें मुझे कोई संशय नहीं है। आप को उनसे कोई भय नहीं है;कयोंकि आप वेदवेत्ता ब्राह्मण हैं। विशेषतः दूतकर्म में नियुक्त और वृद्ध हैं। अतः आप पुष्प नक्षत्र से युक्त जय नामक मुहूर्त में कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर के कार्य की सिद्धि के लिये कौरवों के पास शीघ्र जाइये।

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! महामना राजा द्रुपद के द्वारा इस प्रकार की अनुशासित होकर सदाचार-सम्पन्न पुरोहित ने हस्तिनापुर को प्रस्थान किया। वे विद्वान‌ तथा नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ थे। वे पाण्डवों के हित लिये शिष्यों के साथ कौरवों की (राजधानी) की ओर गये थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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