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महाभारत: उद्योग पर्व: द्विसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
- भीष्म का पाण्डव पक्ष के अतिरथी वीरों का वर्णन करते हुए शिखण्डी और पाण्डवों वध न करने का कथन
- भीष्म जी कहते हैं- महाराज! भारत! पाण्डव पक्ष में राजा रोचमान महारथी हैं। वे युद्ध में शत्रुसेना के साथ देवताओं के समान पराक्रम दिखाते हुए युद्ध करेंगे। (1)
- कुन्तिभोजकुमार राजा पुरूजित जो भीमसेन के मामा हैं, वे भी महाधनुर्धर और अत्यन्त बलवान हैं। मैं इन्हें भी अतिरथी मानता हूँ। (2)
- इनका धनुष महान है। ये अस्त्रविद्या के विद्वान और युद्धकुशल हैं। रथियों में श्रेष्ठ वीर पुरूजित विचित्र युद्ध करने वाले और शक्तिशाली हैं। (3)
- जैसे इन्द्र दानवों के साथ पराक्रमपूर्वक युद्ध करते हैं, उसी प्रकार ये भी शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे। उनके साथ जो सैनिक आये हैं, वे भी युद्ध की कला में निपुण और विख्यात वीर हैं। (4)
- वीर पुरूजित पाण्डवों के प्रिय एवं हित में तत्पर होकर अपने भानजों के लिये युद्ध में महान कर्म करेंगे। (5)
- महाराज! भीमसेन और हिडिम्बा का पुत्र राक्षसराज घटोत्कच बड़ा मायावी है। वह मेरे मत में रथयूथपतियों का भी यूथपति है। (6)
- उसको युद्ध करना बहुत प्रिय है। तात! वह मायावी राक्षस समरभूमि में उत्साहपूर्वक युद्ध करेगा। उसके साथ जो वीर राक्षस एवं सचिव हैं, वे सब उसी के वश में रहने वाले हैं। (7)
- ये तथा और भी बहुत से वीर क्षत्रिय जो विभिन्न जन पदों के स्वामी हैं और जिनमें श्रीकृष्ण का सबसे प्रधान स्थान है, पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के लिये यहाँ एकत्र हुए हैं। (8)
- राजन! ये महात्मा पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के मुख्य-मुख्य रथी, अतिरथी और अर्धरथी यहाँ बताये गये हैं। (9)
- नरेश्वर! देवराज इंद्र के समान तेजस्वी किरीटधारी वीर वर अर्जुन के द्वारा सुरक्षित हुई युधिष्ठिर की भयंकर सेना का ये उपर्युक्त वीर समरागंण में संचालन करेंगे। (10)
- वीर! मैं तुम्हारी ओर से रणभूमि में उन मायावेत्ता और विजयाभिलाषी पाण्डव वीरों के साथ अपनी विजय अथवा मृत्यु की आकांक्षा लेकर युद्ध करूँगा। (11)
- वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण और अर्जुन रथियों में श्रेष्ठ हैं। वे क्रमशः सुदर्शन चक्र और गाण्डीव धनुष धारण करते हैं। वे संध्याकालीन सूर्य और चन्द्रमा की भाँति परस्पर मिलकर जब युद्ध में पधारेंगे, उस समय मैं उनका सामना करूँगा। (12)
- पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के और भी जो-जो श्रेष्ठ रथी सैनिक हैं, उनका और उनकी सेनाओं का मैं युद्ध के मुहाने पर सामना करूँगा। (13)
- राजन! इस प्रकार मैंने तुम्हारे इन मुख्य-मुख्य रथियों और अतिरथियों का वर्णन किया है। इनके सिवा, जो कोई अर्धरथी है, उनका भी परिचय दिया है। कौरवेन्द्र! इसी प्रकार पाण्डव पक्ष के भी रथी आदि का दिग्दर्शन कराया गया है। (14)
- भारत! अर्जुन, श्रीकृष्ण तथा अन्य जो-जो भूपाल हैं, मैं उनमें से जितनों को देखूंगा, उन सबको आगे बढ़ने से रोक दूंगा। (15)
- परंतु महाबाहो! पाञ्चाल राजकुमार शिखण्डी को धनुष पर बाण चढा़ये युद्ध में अपना सामना करते देखकर भी मैं नहीं मारूंगा। (16)
- सारा जगत यह जानता है कि मैं मिले हुए राज्य को पिता का प्रिय करने की इच्छा से ठुकराकर ब्रह्मचर्य के पालन में दृढ़तापूर्वक लग गया। (17)
- माता सत्यवती के ज्येष्ठ पुत्र चित्रांगद को कौरवों के राज्य पर और बालक विचित्रवीर्य को युवराज के पद पर अभिषिक्त कर दिया था। (18)
- सम्पूर्ण भूमण्डल में समस्त राजाओं के यहाँ अपने देवव्रत स्वरूप की ख्याति कराकर मैं कभी भी किसी स्त्री को अथवा जो पहले स्त्री रहा हो, उस पुरुष को भी नहीं मार सकता। (19)
- राजन! शायद तुम्हारे सुनने में आया होगा, शिखण्डी पहले ‘स्त्रीरूप’ में ही उत्पन्न हुआ था; भारत! पहले कन्या होकर वह फिर पुरुष हो गया था; इसीलिये मैं उससे युद्ध नहीं करूंगा। (20)
- भरतश्रेष्ठ! मैं अन्य सब राजाओं को, जिन्हें युद्ध में पाऊंगा, मारूंगा; परंतु कुन्ती के पुत्रों का वध कदापि नहीं करूंगा। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत रथातिरथ संख्यानपर्व में एक सौ बहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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