चतुर्नवतितम (94) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुर्नवतितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय बोले- भगवन्! अब मैं पुरु के वंश का विस्तार करने वाले राजाओं का परिचय सुनना चाहता हूँ। उनका बल और पराक्रम कैसा था? वै कैसे और कितने थे? मेरा विश्वास है कि इस वंश में पहले कभी किसी प्रकार भी कोई ऐसा राजा नहीं हुआ है, जो शीलरहित, बल पराक्रम से शून्य अथवा संतान हीन रहा हो। तपोधन! जो अपने सदाचार के लिये प्रसिद्ध और विवेक सम्पन्न थे, उन सभी पूरुवंशी राजाओं के चरित्र को मुझे विस्तारपूर्वक सुनने की इच्छा है। वैशम्पायन जी ने कहा- जनमेजय! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो, वह सब मैं बताऊंगा। पूरु के वंश में उत्पन्न हुए वीर नरेश इन्द्र के समान तेजस्वी, अत्यन्त धनवान्, परमपराक्रमी तथा समस्त शुभ लक्षणों से सम्मानित थे। (उन सबका परिचय देता हूं)। पुरु के पौष्टि नामक पत्नी के गर्भ से प्रवीर, ईश्वर तथा रौद्राश्व नामक तीन महारथी पुत्र हुए इनमें से प्रवीर अपनी वंश-परम्परा को आगे बढ़ाने वाले हुए। प्रवीर के पुत्र का नाम मनस्यु था, जो शूरसेनी के पुत्र और शक्तिशाली थे। कमल के समान नेत्र वाले मनस्यु ने चारों समुद्रों से घिरी हुई समस्त पृथ्वी का पालन किया। मनस्यु के सौवीरी के गर्भ से तीन पुत्र हुए- शक्त, संहनन और वाग्मी। वे सभी शूरवीर और महारथी थे। पूरु के तीसरे पुत्र मनस्वी रौद्राश्व के मिश्रकेशी अप्सरा के गर्भ से अन्वग्भानु आदि दस महाधनुर्धर पुत्र हुए, जो सभी यज्ञकर्ता, शूरवीर, संतानवान, अनेकशास्त्रों के विद्वान् सम्पूर्ण अस्त्र विद्या के ज्ञाता तथा धर्मपरायण थे। (उन सबके नाम इस प्रकार हैं-) ऋचेयु, कक्षेयु, पराक्रमी कृकणेयु, स्थण्डिलेयु, वनेयु, महायशस्वी जलेयु, बलवान् और बुद्धिमान् तेजेयु, इन्द्र के समान पराक्रमी सत्येयु, धर्मेयु तथा दसवें देवतुल्य पराक्रमी संनतेयु। ॠचेयु जिनका नाम अनाधृष्टि भी है, अपने सब भाइयों में वैसे ही विद्वान् और पराक्रमी हुए, जैसे देवतओं में इन्द्र। वे भूमण्डल के चक्रवर्ती राजा थे। अनाधृष्टि के पुत्र का नाम मतिनार था। राजा मतिनार राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञ करने वाले एवं परम धर्मात्मा थे। राजन्! मतिनार के चार पुत्र हुए, जो अत्यन्त पराक्रमी थे। उनके नाम ये हैं- तंसु, महान् अतिरथ और अनुपम तेजस्वी द्रुह्यु। इनमें महापराक्रमी तंसु ने पौरववंश का भार वहन करते हुए उज्ज्वल यश का उपार्जन किया और सारी पृथ्वी को जीत लिया। पराक्रमी तंसु ने ईलिन नामक पुत्र उत्पन्न किया, जो विजयी पुरुषों में श्रेष्ठ था। उसने भी सारी पृथ्वी जीत ली थी। ईलिन ने रथन्तरीन नाम वाली अपनी पत्नी के गर्भ से पंचमहाभूतों के समान दुष्यन्त आदि पांच राजपुत्रों को पुत्ररूप में उत्पन्न किया। (उनके नाम ये हैं-) दुष्यन्त, शूर, भीम, प्रवसु तथा वसु। जनमेजय! इनमें सबसे बड़े होने के कारण दुष्यन्त राजा हुए। दुष्यन्त से विद्वान् राजा भरत का जन्म हुआ, जो शकुन्तला के पुत्र थे। उन्हीं से भरतवंश का महान् यश फैला। भरत ने अपनी तीन रानियों से नौ पुत्र उत्पन्न किये। किंतु ‘ये मेरे अनुरुप नहीं हैं’ ऐसा कहकर राजा ने उन शिशुओं का अभिनन्दन नहीं किया। तब उन शिशुओं की माताओं ने कुपित होकर उनको मार डाला। इससे महाराज भरत का वह पुत्रोत्पादन व्यर्थ हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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