महाभारत आदि पर्व अध्याय 176 श्लोक 40-47

षट् सप्‍तत्‍यधिकशततम (176) अध्‍याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व:षट् सप्‍तत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 40-47 का हिन्दी अनुवाद


जैसे शीतल किरणों वाले चन्‍द्रमा शरत्‍काल में उदित हो आकाश को अपनी ज्‍योत्‍सना से जगमग कर देते हैं, उसी प्रकार लक्ष्‍मीवानों में श्रेष्‍ठ नरेश ने उस अयोध्‍यापुरी को शोभा से परिपूर्ण कर दिया। नगर की सड़कों को झाड़-फुहारकर उन पर छिड़काव किया गया था। सब ओर लगी हुई ध्‍वजा पताकाएं उस पुरी की शोभा बढ़ा रही थी। इस प्रकार राजा की वह उत्‍तम नगरी दर्शकों के मन को उत्‍तम आहार प्रदान कर रही थी। कुरुनन्‍दन! जैसे इन्‍द्र से अमरावती की शोभा होती है, उसी प्रकार संतुष्ट एवं पुष्ट मनुष्‍यों से भरी हुई अयोध्‍यापुरी उस समय महाराज कल्‍माषाद उपस्थिति से बड़ी शोभा पा रही थी। राजर्षि कल्‍माषपाद के उस उत्तम नगरी में प्रवेश करने के पश्चात उक्‍त महाराज की आज्ञा के अनुसार (महारानी मदयन्ती) महर्षि वसिष्‍ठ के समीप गयी।

तत्‍पश्‍चात् भगवन् भक्‍त महर्षि‍ वसिष्ठ ने ॠतुकाल में शास्‍त्र की अलौकिक विधि के अनुसार महारानी के साथ नियोग किया। तदनन्‍तर रानी की कुक्षि में गर्भ स्‍थापित हो जाने पर उक्‍त राजा से वन्दित हो (उनसे विदा लेकर) मुनिवर वसिष्‍ठ अपने आश्रम को लौट गये। जब बहुत समय बीतने के बाद (भी) वह गर्भ बाहर न निकला, तब यशस्विनी रानी (मदयन्‍ती) ने अश्‍म (पत्‍थर) से अपने गर्भाश्‍य पर प्रहार किया। तदनन्‍तर बाहरवें वर्ष में बालक का जन्‍म हुआ। वही पुरुषश्रेष्ठ राजर्षि अश्‍मक नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिन्‍होंने पौदन्य नाम का नगर बसाया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्‍तगर्त चैत्ररथ पर्व में वसिष्‍ठ चरित के प्रसंग में सौदास को पुत्र-प्राप्तिविषयक एक सौ छिहत्‍तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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