महाभारत आदि पर्व अध्याय 101 श्लोक 1-14

एकाधिकशततम (101) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: एकाधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


सत्‍यवती के गर्भ से चित्रांगद और विचित्रवीर्य की उत्‍पत्ति, शान्‍तनु और चित्रांगद का निधन तथा विचित्रवीर्य का राज्‍याभिषेक

वैशम्पायन जी कहते हैं- सत्यवती चेदिराज वसु की पुत्री है और निषादराज ने इसका पालन-पोषण किया है- यह जानकर राजा शान्तनु ने उसके साथ शास्त्रीय विधि से विवाह किया। तदनन्‍तर विवाह सम्‍पन्न हो जाने पर राजा शान्‍तनु ने उस रुपवती कन्‍या को अपने महल में रखा। कुछ काल के पश्चात् सत्‍यवती के गर्भ से शान्‍तनु का बुद्धिमान् पुत्र वीर चित्रांगद उत्‍पन्न हुआ, जो बड़ा ही पराक्रमी तथा समस्‍त पुरुषों में श्रेष्ठ था। इसके बाद महापराक्रमी और शक्तिशाली राजा शान्‍तनु ने दूसरे पुत्र महान् धनुर्धर राजा विचित्रवीर्य को जन्‍म दिया। नरश्रेष्ठ विचित्रवीर्य अभी यौवन को प्राप्त भी नहीं हुए थे कि बुद्धिमान् महाराजा शान्‍तनु की मृत्‍यु हो गयी। शान्‍तनु के स्‍वर्गवासी हो जाने पर भीष्‍म ने सत्‍यवती की सम्मत्ति से शत्रुओं का दमन करने वाले वीर चित्रांगद को राज्‍य पर बिठाया। चित्रांगद अपने शौर्य के घमंड में आकर सब राजाओं का तिरस्‍कार करने लगे। वे किसी भी मनुष्‍य को अपने समान नहीं मानते थे। मनुष्‍यों पर ही नहीं, वे देवताओं तथा असुरों पर भी आक्षेप करते थे। तब एक दिन उन्‍हीं के समान नाम वाला महाबली गन्‍धर्वराज चित्रांगद उनके पास आया।

गन्‍धर्व ने कहा- राजकुमार! तुम मेरे सदृश नाम धारण करते हो, अत: मुझे युद्ध का अवसर दो और यदि यह न कर सके तो अपना दूसरा नाम रख लो। मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। मेरे नाम द्वारा व्‍यर्थ पुकारा जाने वाला मनुष्‍य मेरे सामने सकुशल नहीं जा सकता। तदनन्‍तर उसके पास कुरुक्षेत्र में राजा चित्रांगद का बड़ा भारी युद्ध हुआ। गन्‍धर्वराज और कुरुराज दोनों ही बड़े बलवान थे। उनमें सरस्‍वती नदी के तट पर तीन वर्षों तक युद्ध होता रहा। अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा से व्‍याप्त घमासान युद्ध में माया ने बडे़-चढ़े हुए गन्‍धर्व ने कुरुक्षेत्र वीर चित्रांगद का वध कर डाला। शत्रुओं का दमन करने वाले नरश्रेष्‍ठ चित्रांगद को मारकर युद्ध समाप्‍त करके वह गन्‍धर्व स्‍वर्गलोक में चला गया। उन महान तेजस्‍वी पुरुषसिंह चित्रांगद के मारे जाने पर शान्‍तनुनंदन भीष्‍म ने उनके प्रेम-कर्म करवाये। विचित्रवीर्य अभी बालक थे। युवावस्‍था में नहीं पहुँचे थे तो भी महाबाहु भीष्‍म ने उन्‍हें कुरुक्षेत्र के राज्‍य पर अभिषिक्‍त कर दिया। महाराज जनमेयज! तब विचित्रवीर्य भीष्‍म जी की आज्ञा के अधीन रहकर अपने बाप-दादों के राज्‍य का शासन करने लगे। शान्‍तनुनंदन भीष्‍म धर्म एवं राजनीति आदि शास्‍त्रों में कुशल थे, अत: राजा विचित्रवीर्य धर्मपूर्वक उनका सम्‍मान करते थे और भीष्‍म जी इन अल्‍पवयस्‍क नरेश की सब प्रकार से रक्षा करते थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत सम्‍भव पर्व में चित्रांगदोपाख्‍यानविषयक एक सौ एकवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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