"महाभारत विराट पर्व अध्याय 22 श्लोक 69-85" के अवतरणों में अंतर

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इतने में ही भीम ने दोनों हथेलियों से बलवान् कीचक की छाती पर प्रहार किया। चोट खाकर बलवान् कीचक क्रोध से जल उठा, किंतु अपने स्थल से एक पग भी विचलित नहीं हुआ। भूमि पर खड़े रहकर दो घड़ी तक उस दुःसह वेग को सह लेने के पश्चात् भीमसेन के बल से पीड़ित हो सूतपुत्र कीचक अपनी शक्ति खो बैठा। महाबली भीम ने उसे निर्बल एवं अचेत होते देख उसकी छाती पर चढ़ बैइे और बडत्रे वेग से उसे रौंदने लगे।। विजयी वीरों में श्रेष्ठ भीमसेन का क्रोधावेश अभी उतरा नहीं था। उन्होंने पुनः बारंबार उच्छ्वास लेकर कीचक के केश पकड़ लिये। जैसे कच्चे मांस की अभिलाषा रखने वाला सिंह महान् मृग को पकड़ ले, उसी प्रकार महाबली भीम कीचक को पकड़ कर बड़ी शोभा पा रहे थे। तदनन्तर उसे अत्यन्त थका जानकर भीम ने अपनी भुजाओं मे इस प्रकार कस लिया, जैसे पशु को रससी से बाँध दिया गया हो। अब वह फूटे नगारे के समान विकृत स्वर में जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा बन्धन से छूटने के लिये छटपटाने लगा।
 
  
उसकी चेतना लुप्त हो रही थी। उसी दशा में भीमसेन ने बहुत देर तक घुमाया। फिर द्रौपदी का क्रोध शान्त करने के लिये उन्होंने दोनों हाथों से उसका गला पकड़कर बड़े वेग से दबाया। इस प्रकार जब उसके सब अंग भंग हो गये, आँख की पुतलियाँ बाहर निकल आयीं और वस्त्र फट गये, तब उन्होंने उस कीचकाधम की कमर को अपने घुटनों से दबाकर दोनों भुजाओं द्वारा उसका गला घोंट दिया और उसे पशु की तरह मारने लगे। मृत्यु के समय कीचक को विवाद करते देख पाण्डुनन्दन भीम ने उसे धरती पर घसीटा और इस प्रकार कहा- ‘जो सैरन्ध्री के लिये कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चंष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं उऋण हो जाऊँगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी। पुरुषों में उत्कृष्ट वीर भीमसेन के नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे।
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इतने में ही [[भीम]] ने दोनों हथेलियों से बलवान् [[कीचक]] की छाती पर प्रहार किया। चोट खाकर बलवान् कीचक क्रोध से जल उठा, किंतु अपने स्थल से एक पग भी विचलित नहीं हुआ। भूमि पर खड़े रहकर दो घड़ी तक उस दुःसह वेग को सह लेने के पश्चात् भीमसेन के बल से पीड़ित हो सूतपुत्र कीचक अपनी शक्ति खो बैठा। महाबली भीम उसे निर्बल एवं अचेत होते देख उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बड़े वेग से उसे रौंदने लगे। विजयी वीरों में श्रेष्ठ भीमसेन का क्रोधावेश अभी उतरा नहीं था। उन्होंने पुनः बारंबार उच्छवास लेकर कीचक के केश पकड़ लिये। जैसे कच्चे मांस की अभिलाषा रखने वाला सिंह महान् मृग को पकड़ ले, उसी प्रकार महाबली भीम कीचक को पकड़ कर बड़ी शोभा पा रहे थे। तदनन्तर उसे अत्यन्त थका जानकर भीम ने अपनी भुजाओं में इस प्रकार कस लिया, जैसे पशु को रस्सी से बाँध दिया गया हो। अब वह फूटे नगारे के समान विकृत स्वर में जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा बन्धन से छूटने के लिये छटपटाने लगा।
 
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उन्होंने उपयुक्त बातें कहकर कीचक को नीचे डाल दिया। उस समय उसके गहने कपड़े इधर उधर बिखर गये थे। वह छटपटा रहा था। उसकी आँखें ऊपर को चढ़ गयी थीं और उसके प्राण पखेरू निकल रहे थे। बलवानों में श्रेष्ठ भीम अब भी क्रोध में भरे थे। वे हाथ से हाथ मलते हुए दाँतों से ओठ दबाकर पुनः बलपूर्वक कीचक के ऊपर चढ़ गये। तदनन्तर जैसे महादेवजी ने गयासुर के सब अंगों को उसके शरीर के भीतर घुसेड़ दिया था, उसी प्रकार उन्होंने भी कीचक के हाथ, पैर, सिंर और गर्दन आदि सब अंगों को उसके धड़ में ही घुसा दिया। महाबली भीम ने उसका सारा शरीर मथ डाला और उसे मांस का लोंदा बना दिया। इसके बाद उन्होंने द्रौपदी का दिखाया। उस समय महातेजस्वी भीम ने युवतियों में श्रेष्ठ द्रौपदी से कहा!  ‘पाञ्चाली!  यहाँ आओं और इसे देखो। इस कामी की शक्ल कैसी बना दी है।’। माहराज!  भयंकर पराक्रमी भीम ने ऐसा कहकर उस दुरात्मा की लाश को पैर से दबाया।
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उसकी चेतना लुप्त हो रही थी। उसी दशा में भीमसेन ने बहुत देर तक घुमाया। फिर [[द्रौपदी]] का क्रोध शान्त करने के लिये उन्होंने दोनों हाथों से उसका गला पकड़कर बड़े वेग से दबाया। इस प्रकार जब उसके सब अंग भंग हो गये, आँख की पुतलियाँ बाहर निकल आयीं और वस्त्र फट गये, तब उन्होंने उस कीचकाधम की कमर को अपने घुटनों से दबाकर दोनों भुजाओं द्वारा उसका गला घोंट दिया और उसे पशु की तरह मारने लगे। मृत्यु के समय [[कीचक]] को विषाद करते देख पाण्डुनन्दन [[भीम]] ने उसे धरती पर घसीटा और इस प्रकार कहा- ‘जो [[सैरन्ध्री]] के लिये कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं उऋण हो जाऊँगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी। पुरुषों में उत्कृष्ट वीर भीमसेन के नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे। उन्होंने उपयुक्त बातें कहकर कीचक को नीचे डाल दिया।
  
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उस समय उसके गहने कपड़े इधर-उधर बिखर गये थे। वह छटपटा रहा था। उसकी आँखें ऊपर को चढ़ गयी थीं और उसके प्राण पखेरू निकल रहे थे। बलवानों में श्रेष्ठ भीम अब भी क्रोध में भरे थे। वे हाथ से हाथ मलते हुए दाँतों से ओठ दबाकर पुनः बलपूर्वक कीचक के ऊपर चढ़ गये। तदनन्तर जैसे महादेव जी ने गयासुर के सब अंगों को उसके शरीर के भीतर घुसेड़ दिया था, उसी प्रकार उन्होंने भी कीचक के हाथ, पैर, सिंर और गर्दन आदि सब अंगों को उसके धड़ में ही घुसा दिया। महाबली भीम ने उसका सारा शरीर मथ डाला और उसे मांस का लोंदा बना दिया। इसके बाद उन्होंने [[द्रौपदी]] को दिखाया। उस समय महातेजस्वी भीम ने युवतियों में श्रेष्ठ द्रौपदी से कहा!  ‘पांचाली! यहाँ आओ और इसे देखो। इस कामी की शक्ल कैसी बना दी है।’ महाराज! भयंकर पराक्रमी भीम ने ऐसा कहकर उस दुरात्मा की लाश को पैर से दबाया।
 
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11:38, 1 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण

द्वाविंश (22) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)

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महाभारत: विराट पर्व :द्वाविंश अध्याय: श्लोक 69-85 का हिन्दी अनुवाद


इतने में ही भीम ने दोनों हथेलियों से बलवान् कीचक की छाती पर प्रहार किया। चोट खाकर बलवान् कीचक क्रोध से जल उठा, किंतु अपने स्थल से एक पग भी विचलित नहीं हुआ। भूमि पर खड़े रहकर दो घड़ी तक उस दुःसह वेग को सह लेने के पश्चात् भीमसेन के बल से पीड़ित हो सूतपुत्र कीचक अपनी शक्ति खो बैठा। महाबली भीम उसे निर्बल एवं अचेत होते देख उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बड़े वेग से उसे रौंदने लगे। विजयी वीरों में श्रेष्ठ भीमसेन का क्रोधावेश अभी उतरा नहीं था। उन्होंने पुनः बारंबार उच्छवास लेकर कीचक के केश पकड़ लिये। जैसे कच्चे मांस की अभिलाषा रखने वाला सिंह महान् मृग को पकड़ ले, उसी प्रकार महाबली भीम कीचक को पकड़ कर बड़ी शोभा पा रहे थे। तदनन्तर उसे अत्यन्त थका जानकर भीम ने अपनी भुजाओं में इस प्रकार कस लिया, जैसे पशु को रस्सी से बाँध दिया गया हो। अब वह फूटे नगारे के समान विकृत स्वर में जोर-जोर से सिंहनाद करने तथा बन्धन से छूटने के लिये छटपटाने लगा।

उसकी चेतना लुप्त हो रही थी। उसी दशा में भीमसेन ने बहुत देर तक घुमाया। फिर द्रौपदी का क्रोध शान्त करने के लिये उन्होंने दोनों हाथों से उसका गला पकड़कर बड़े वेग से दबाया। इस प्रकार जब उसके सब अंग भंग हो गये, आँख की पुतलियाँ बाहर निकल आयीं और वस्त्र फट गये, तब उन्होंने उस कीचकाधम की कमर को अपने घुटनों से दबाकर दोनों भुजाओं द्वारा उसका गला घोंट दिया और उसे पशु की तरह मारने लगे। मृत्यु के समय कीचक को विषाद करते देख पाण्डुनन्दन भीम ने उसे धरती पर घसीटा और इस प्रकार कहा- ‘जो सैरन्ध्री के लिये कण्टक था, जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं उऋण हो जाऊँगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी। पुरुषों में उत्कृष्ट वीर भीमसेन के नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे। उन्होंने उपयुक्त बातें कहकर कीचक को नीचे डाल दिया।

उस समय उसके गहने कपड़े इधर-उधर बिखर गये थे। वह छटपटा रहा था। उसकी आँखें ऊपर को चढ़ गयी थीं और उसके प्राण पखेरू निकल रहे थे। बलवानों में श्रेष्ठ भीम अब भी क्रोध में भरे थे। वे हाथ से हाथ मलते हुए दाँतों से ओठ दबाकर पुनः बलपूर्वक कीचक के ऊपर चढ़ गये। तदनन्तर जैसे महादेव जी ने गयासुर के सब अंगों को उसके शरीर के भीतर घुसेड़ दिया था, उसी प्रकार उन्होंने भी कीचक के हाथ, पैर, सिंर और गर्दन आदि सब अंगों को उसके धड़ में ही घुसा दिया। महाबली भीम ने उसका सारा शरीर मथ डाला और उसे मांस का लोंदा बना दिया। इसके बाद उन्होंने द्रौपदी को दिखाया। उस समय महातेजस्वी भीम ने युवतियों में श्रेष्ठ द्रौपदी से कहा! ‘पांचाली! यहाँ आओ और इसे देखो। इस कामी की शक्ल कैसी बना दी है।’ महाराज! भयंकर पराक्रमी भीम ने ऐसा कहकर उस दुरात्मा की लाश को पैर से दबाया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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