द्वाविंश (22) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 51-68 का हिन्दी अनुवाद
फिर दोनों क्रोधरूपी विष से उद्धत हुए पाँच मस्तकों वाले सर्पों की भाँति अपनी-अपनी (पाँच अंगुलियों से युक्त) भुजाओं को ऊपर उठाकर एक-दूसरे पर नखों और दाँतों से प्रहार करने लगे। बलिष्ठ कीचक ने बड़े वेग से आघात किया, तो भी दृढ़प्रतिज्ञ भीम उस युद्ध में स्थिर रहे; एक पग भी पीछे नहीं हटे। फिर दोनों आपस में गुँथ गये और एक-दूसरे को खींचने लगे। उस समय वे दो ह्रष्ट-पुष्ट साँड़ों की भाँति सुशोभित हो रहे थे। नख और दाँत ही उनके आयुध थे। जैसे दो मतवाले व्याघ्र परस्पर लड़ रहे हों, उसी प्रकार उनमें अत्यन्त भयंकर तुमुल युद्ध होने लगा। जैसे क्रोध में भरा हुआ एक हाथी गण्डस्थल से मद टपकाते हुए दूसरे हाथी को सूँड़ से पकड़ ले, उसी प्रकार रोषयुक्त कीचक ने सहसा झपटकर दोनों हाथों से भीमसेन को पकड़ लिया। तब पराक्रमी भीम ने भी झपटकर उसे पकड़ा, किंतु बलवानों में श्रेष्ठ कीचक ने बलपूर्वक उन्हें झटक दिया। उस समय उस युद्ध में उन दोनों बलवानों की भुजाओं की रगड़ से बाँस फटकने-सा भयानक शब्द होने लगा। फिर जिस प्रकार प्रचण्ड आँधी वृक्ष को झकझोर डालती है, उसी प्रकार भीमसेन कीचक को बलपूर्वक धक्के दे देकर उसे नृत्यशाला में वेग से घुमाने लगे। उस युद्ध में बलवान् भीम की पकड़ में आकर यद्यपि कीचक अपना बल खो रहा था, तथापि वह यथाशक्ति उन्हें परास्त करने की चेष्टा करता रहा और भीमसेन को अपनी ओर खींचने लगा। जब वे कुछ-कुछ वश में आ गये और उनका पैर कुछ लड़खड़ाने लगा, तब उस दशा में खड़े हुए भीमसेन को बलवान् कीचक ने क्रोधपूर्वक दोनों घुटनों से मारकर पृथ्वी पर गिरा दिया। अत्यन्त बलशाली कीचक द्वारा इस प्रकार भूमि पर गिराये हुए भीमसेन हाथों में दण्ड धारण करने वाले यमराज की भाँति बड़े वेग से उछलकर खड़े हो गये। सूतपुत्र और पाण्डुनन्दन दोनों बल से उन्मत्त हो रहे थे। वे दोनों बलवान् वीर स्पर्धा के कारण उस निर्जन स्थान में आधी रात के समय एक-दूसरे को खींचते और धक्के देते रहे। इससे वह विशाल भवन बार-बार हिल उठता था। दोनों योद्धा बड़े क्रोध में भरकर एक-दूसरे के सामने जोर-जोर से गरज रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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