महाभारत वन पर्व अध्याय 313 श्लोक 82-97

त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्‍याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्रयोदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः श्लोक 82-97 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर बोले- जगत् अज्ञान से ढका हुआ है, तमोगुण के कारण वह प्रकाशित नहीं होता, लोभ के कारण मनुष्य मित्रों को त्याग देता है और आसक्ति के कारण स्वर्ग में नहीं जाता।

यक्ष ने पूछा- पुरुष किस प्रकार मरा हुआ कहा जाता है? राष्ट्र किस प्रकार मर जाता है? श्राद्ध किस प्रकार मृत हो जाता है? और यज्ञ कैसे नष्ट हो जाता है?

युधिष्ठिर बोले- दरिद्र पुरुष मरा हुआ है यानि मरे हुए के समान है, बिना राजा का राज्य मर जाता है यानि नष्ट हो जाता है, श्रोत्रिय ब्राह्मण के बिना श्राद्ध मृत हो जाता है और बिना दक्षिणा का यज्ञ नष्ट हो जाता है।

यक्ष ने पूछा- दिशा क्या है? जल क्या है? अन्न क्या है? विष क्या है? और श्राद्ध का समय क्या है? यह बताओ। इसके बाद जल पीओ और ले भी जाओ।

युधिष्ठिर बोले- सत्पुरुष दिशा हैं, आकाश जल है, पृथ्वी अन्न है, प्रार्थना (कामना) विष है और ब्राह्मण ही श्राद्ध का समय है अथवा यक्ष! इस विषय में तुम्हारी क्या मान्यता है?

यक्ष ने पूछा- तप का क्या लक्षण बताया गया है? दम किसे कहते हैं? और लज्जा किसको कहा गया है?

युधिष्ठिर बोले- अपने धर्म में तत्पर रहना तप है, मन के दमन का ही नाम दम है, सर्दी-गर्मी आदि द्वन्द्वों का सहन करना क्षमा है तथा न करने योग्य काम से दूर रहना लज्जा है।

यक्ष ने पूछा- राजन्! ज्ञान किसे कहते हैं? शम क्या कहलाता है? उत्तम दया किसका नाम है? और आर्जन (सरलता) किसे कहते हैं?

युधिष्ठिर बोले- परमात्मतत्त्व का यथार्थ बोध ही ज्ञान है, चित्त की शान्ति ही शम है, सब के सुख की इच्छा रखना ही उत्तम दया है और समचित्त होना ही आर्जन (सरलता) है।

यक्ष ने पूछा- मनुष्यों में दुर्जय शत्रु कौन है? अनन्त व्याधि क्या है? साधु कौन माना जाता है? और असाधु किसे कहते हैं?

युधिष्ठिर बोले- क्रोध दुर्जय शत्रु है, लोभ अनन्त व्याधि है तथा जो समस्त प्राणियों का हित करने वाला हो, वही साधु है और निर्दयी पुरुष को ही असाधु माना गया है।

यक्ष ने पूछा- राजन्! मोह किसे कहते हैं? मान क्या कहलाता है? आलस्य किसे जानना चाहिये? और शोक किसे कहते हैं?

युधिष्ठिर बोले- धर्म मूढ़ता ही मोह है, आत्माभिमान ही मान है, धर्म का पालन न करना आलस्य है और अज्ञान को ही शोक कहते हैं।

यक्ष ने पूछा- ऋषियों ने स्थिरता किसे कहा है? धैर्य क्या कहलाता है? परम स्नान किसे कहते हैं? और दान किसका नाम है?

युधिष्ठिर बोले- अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थिरता है, इन्द्रियनिग्रह धैर्य है, मानसिक मलों का त्याग करना परम स्नान है और प्राणियों की रक्षा करना ही दान है।

यक्ष ने पूछा- किस पुरुष को पण्डित समझना चाहिये? नास्तिक कौन कहलाता है? मूर्ख कौन है? काम क्या है? तथा मत्सर किसे कहते हैं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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