अद्भुत

अद्भुत नामक एक अग्निदेव का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में मिलता है। यह जल में निवास के कारण प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले ‘सह’ नामक अग्नि और मुदिता के पुत्र थे।

  • ब्राह्मण लोगों में वंश परम्‍परा के क्रम से सभी यह मानते और कहते हैं कि ‘अद्भुत’ नामक अग्नि सम्‍पूर्ण भूतों के अधिपति हैं। वे ही सबके आत्मा और भुवन-भर्ता हैं तथा वे ही इस जगत के सम्‍पूर्ण महाभूतों के पति हैं।
  • उनमें सम्‍पूर्ण ऐश्वर्य सुशोभित हैं और वे महातेजस्‍वी अग्रिदेव सदा सर्वत्र विचरण करते हैं, जो अग्नि ग्रहपति नाम से सदा यज्ञ में पूजित होते हैं।
  • ये ही हवन किये गये हविष्‍य को देवताओं के पास पहुँचाते हैं, वे अद्भुत अग्नि ही इस जगत को पवित्र करने वाले हैं।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 11 |

  1. महाभारत वन पर्व अध्याय 222 श्लोक 1-15

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