बाणासुर राजा बलि के सौ पुत्रों में से एक था। वह सबसे बड़ा, वीर तथा पराक्रमी था। अनौपम्या नाम की इसकी पत्नी को नारद ने एक मंत्र दिया था, जिससे यह सबको प्रसन्न कर सकती थी।[1] उसने घोर तपस्या के फलस्वरूप शिव से अनेक दुर्लभ वर प्राप्त किये थे। अत: वह गर्वोन्मत्त हो उठा था। उसके एक सहस्र बाहें थीं। वह शोणितपुर पर राज्य करता था।
शिव से वर प्राप्ति
बाणासुर बलि के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ था। वह स्कंद को खेलता देख शिव की ओर आकृष्ट हुआ। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। शिव ने वर मांगने को कहा तो उसने निम्न वर मांगे-
- देवी पार्वती उसे पुत्र-रूप में ग्रहण करें तथा वह स्कंद का छोटा भाई माना जाए।
- वह शिव से आरक्षित रहेगा।
- उसे अपने समान वीर से युद्ध करने का अवसर मिले।
भगवान शिव ने कहा- "अपने स्थान पर स्थापित तुम्हारा ध्वज जब खंडित होकर गिर जायेगा, तभी तुम्हें युद्ध का अवसर मिलेगा।" बाणासुर की एक सहस्र भुजाएं थीं। उसने अपने मन्त्री कुंभांड को समस्त घटनाओं के विषय में बताया तो वह चिंतित हो उठा। तभी इन्द्र के वज्र से उसकी ध्वजा टूटकर नीचे गिर गयी।
कृष्ण-बाणासुर युद्ध
बाणासुर की कन्या उषा ने वन में शिव-पार्वती को रमण करते देखा तो वह भी कामविमोहित होकर प्रिय-मिलन की इच्छा करने लगी। पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने प्रिय के साथ पार्वती की भाँति ही रमण कर पायेगी। स्वप्नदर्शन से वह अनिरुद्ध पर आसक्त हो गयी। चित्रलेखा ने अनिरुद्ध का अपहरण किया तथा उसी की सहायता से उषा का अनिरुद्ध से गांधर्व विवाह हो गया। बाणासुर को ज्ञात हुआ तो उसने अनिरुद्ध को नागपाश से आबद्ध कर लिया। आर्या देवी की आराधना से अनिरुद्ध उन पाशों से मुक्त हो गया। इधर नारद से समस्त समाचार जानकर कृष्ण यादववंशियों सहित बाणासुर के नगर की ओर बढ़े। नगर को चारों ओर से अग्नि ने घेर रखा था। अंगिरा उसकी सुरक्षा में थे। गरुड़ ने हज़ारों मुख धारण करके गंगा से पानी लिया तथा अग्नि पर छिड़ककर उसे बुझा दिया। कृष्ण ने शिव पर जृंभास्त्र का प्रयोग किया। शिव की जृंभा से ज्वाला निकलकर दिशाओं को दग्ध करने लगी। पृथ्वी भयभीत होकर ब्रह्मा की शरण में गयी। ब्रह्मा ने शिव से कहा- "विष्णु और तुम अभिन्न हो। एक ही के दो रूप हो। तुम्हारी सलाह से ही असुरों का नाश आरंभ किया गया था। अब तुम असुरों को प्रश्रय क्यों दे रहे हो?"
शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना। अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया। बाणासुर तथा कृष्ण का युद्ध हुआ। बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं। वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं। कृष्ण ने आंखेंं मूंद लीं। देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया, किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले। शिव ने बीच-बचाव किया। पुत्रवत बाणासुर को शिव ने चार वर प्रदान किये-
- अजर-अमरत्व
- शिव-भक्ति में विभोर नाचने वालों को पुत्र-प्राप्ति
- बाहेंं कटने के कष्ट से मुक्ति
- 'महाकाल' नाम की ख्याति
अत: बाणासुर 'महाकाल' कहलाने लगा।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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