दारुक

दारुक भगवान श्रीकृष्ण के सारथी थे, जो बड़े स्वामी भक्त थे।[1][2]

  • जिस समय अर्जुन सुभद्रा को हरण कर ले जा रहे थे, उस समय दारुक ने अर्जुन से कहा- "मैं यादवों के विरुद्ध रथ नहीं हाँक सकता, अत: आप मुझे बाँध दें और फिर जहाँ चाहे रथ ले जाएँ।
  • लक्ष्मणा को स्वयंवर से लाने के समय दारुक ही रथ हाँक रहे थे।[3]
  • दारुक का पुत्र भी प्रद्युम्न का सारथी था।[4]
  • वासुदेव तथा अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण के स्वर्गवास का समाचार दारुक ने ही दिया था।[5]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवतपुराण 10.50.16; 20 (5); 8; 64 (6); 71.12; विष्णुपुराण 5.37.51
  2. पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 220 |
  3. भागवतपुराण 10.77.9-11;83.33
  4. भागवतपुराण 10.76.27
  5. भागवतपुराण 11.30.41-50; 31.15-17; विष्णुपुराण 5.37.57-64

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